दरिया किनारे चलते वक़्त आज मुझे ठोकर लगी
फिर भी मैं चलता रहा
जहाँ मैं सालों से चलता आ रहा हूँ
पर आज मुझे उसकी परछाई दिखाई दी !

मैं सितारों को देख रहा था
उसमे भी उसका चेहरा नज़र आ रहा था
वो ऊपर से मुझे देख कर मुश्कुरा रही थी
और मैं शरमा रहा था !

वो हवाओ में लिपट कर
मेरे कानो में कुछ कह रही थी
शायद अपना दर्द
अपनी मजबूरियां !

वो बारिश की बूंद बनकर
मेरे आंसुओ को भिगो कर शायद कहना चाह रही थी,
अब रोने के नहीं भींगने और भिगोने के दिन आ गए हैं
फिर एक उम्मीद जागी !

मैंने उसके ह्रदय में झाँक कर देखा
सारा खजाना सहेज कर रखा था
वो वही थी ....हाँ वो तुम ही थी .

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