Sanyasi's Diary

Sanyasi's Diary

Open diary

Life is flip flop between incidents good, bad as well. This will work as a mirror showing me the moments to remember

23 years old, Male, In search of moksha

Diary Entries (60)

Dec 2nd, 2013 2:18 PM

ऐ दर्पण कई महीने और बीत गए है, मृत्यु कलश के लिए मैं दिनों की अस्थियाँ समेटे फिर हाज़िर हूँ,
*
I know one day I will be gone from this world,,
Leaving all who love me,
Leaving all who hate me,
Leaving all who cry for me,
Leaving all who support me,
But right now I'm living, Ma heart is beating, M breathing,
So at this moment single idea of getting away from my loved ones is horrible, deadly...
:O
Today I'm feeling guilty, I have reasons and those were strongly valid.. I dont have any idea what to do ? To cry or something else I should try,
Whenever I Cry,, I know for whom I'm week,
Whenever I Cry,, I know who will console me at my weakest,
Whenever I Cry,, I feel so light,
But sorry Crying is so difficult to do, Or I feel it difficult...
:O
These days I'm getting out of my mind,
I hurt those who supports me always in past and m sure they did same in future,
Thank you to be there,
My thoughts which were so much strong and have meaning in past will change into baseless meaning and yuppp They become cheap these days...
Ohh god plz help me to be strong and caring....
Really its bad feeling when I'm carrying a guilt...
:O
Today I cried,, as I hurt my so called lifeline "Chutki" from some days,,, I feel sorry but dont want to say,, I will say it someday when I am in position to mean....
:O
Behna I know u forgive me because u did always in past,, That is why U get my respect yar..
:O
*
छुटकी, तीन स्तंभों के अलावा बहना तू चौथी मजबूत स्तंभ है जिसने मेरे सबसे बुरे दौर पर थामा है, मैं तेरा कभी बुरा नहीं सोचता, हाँ तू दुखी होती है तो मैं भी होता हूँ, मुस्कुराती है तो मैं भी... बस मेरी ज़ुबान स्पष्ट है तो दिल दुखती है... दिल नही दिखा सकता मगर.... हमेशा साथ रहना है तुझे...
*
इति अस्थि

Oct 11th, 2013 7:37 PM

ऐ दर्पण तीन माह और बीत गए है, मृत्यु कलश के लिए मैं दिनों की अस्थियाँ समेटे फिर हाज़िर हूँ,
*
ऐ ईश्वर तेरे निराकार रूप को सदैव नमन करता हूँ, मगर तेरे नाम पर फैली कूटनीतियों को नापसंद.. बस मेरे उपर अपने आशीष को बनाए रखना..
*
जिंदगी का कलुषित दौर भाग रहा है और मैं अस्तित्व की खोज में केवल रेंग मात्र रहा हूँ, क्यों??? ये सवाल कई रोज से तटस्थ मेरे सामने खड़ा है.. मेरा दिल और मेरी ज़ुबान का रिश्ता भी टूट चुका है, मैं चाह कर भी अपनों को भरोसा नही दिला पा रहा की मैं उनसे कितनी मोहब्बत करता हूँ.. स्पष्ट बोलता हूँ जो दिल में है, और ये ही अपनों के दिलो को तोड़ता भी है.. मगर मैं दिखावा नही करना चाहता, हाँ आख़िरी साँस तक खुद के वादों को निभाने का स्वप्न ज़रूर देखता हूँ..
*
माँ, तू देवी का वो रूप है जिसके आशीष के बिना मैं चाँद कदम भी चल ना सकूँगा, "आई लव यू माँ" हमेशा मेरे साथ रहना, चाहे कोई भी रूप में..
*
पिताजी, एक रोज आप समझोगे की आपकी कितनी इज़्ज़त करता हूँ, और आप कितने खास हो मेरे लिए, बस बहुत देर ना हो जाए.. हमेशा मेरे साथ रहना, चाहे कोई भी रूप में..
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छोटे, खुश रहना, मैं तेरे साथ हूँ....
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छुटकी, इन तीन स्तंभों के अलावा बहना तू चौथी मजबूत स्तंभ है जिसने मेरे सबसे बुरे दौर पर थामा है, मैं तेरा कभी बुरा नहीं सोचता, हाँ तू दुखी होती है तो मैं भी होता हूँ, मुस्कुराती है तो मैं भी... बस मेरी ज़ुबान स्पष्ट है तो दिल दुखती है... दिल नही दिखा सकता मगर.... हमेशा साथ रहना है तुझे...
*
इति अस्थि
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Jul 09th, 2013 9:58 PM

ऐ दर्पण एक दिन और बीत गया है, मृत्यु कलश के लिए मैं दिन की अस्थियाँ समेटे फिर हाज़िर हूँ,
*
कभी कभी एक अजीब सा दोराहा सामने आ जाता है जिंदगी में जब कुछ समझ ही नहीं आता की खुश रहना चाहिए या दुखी... एक ऐसे ही दोराहे पर हूँ अभी,,, पिछले सात महीने से घर पर खाली बैठा रहा कोई नौकरी नहीं मिल सकी... और अब अचानक एक "टाइम पास" मिल रहा है तो घर छोड़कर, माँ को बीमार छोड़कर जाने का मन ही नहीं हो रहा... मगर शायद यही जिंदगी है, चलना ही पड़ता है इस बात का अफ़सोस नहीं है... एक ही अफ़सोस है कि मैं एक अच्छा बेटा, एक अच्छा भाई साबित नहीं हो सका...कितना भी पा लूँ इस बात को झुठला नहीं सकता की जब जब घर वालों को मेरी सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी, मुझे जाना पड़ा और हर बार भारी दिल के साथ... इस बार भी यही हालत है... मैं क्या करूँ???
*
काश मैं रो सकता, हर मोड़ पर हार को झेलते झेलते मैं शिथिल हो चुका हूँ... हे प्रभु कब तक दिल में सैलाब दबा कर चलूं??? एक कृपा कर इन्हे मेरी आँखों से निकालने दे.....
*
"छुटकी" तेरे भरोसे काई बड़ी ज़िम्मेदारी सौंप के जा रहा हूँ... अपना ख़याल रखना डियर,,, कुछ भी छुपाना मत मुझसे,,, मैं हर बार तेरे साथ हूँ...
*
बहुत बुरी फीलिंग के साथ अलविदा मेरे अपने शहर, मेरे दिल के करीबियो... जल्दी लौटूँगा मैं...
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इति अस्थि
शुभ्रात्रि
*****

Jun 19th, 2013 4:19 PM

ऐ दर्पण एक दिन और बीत गया है, मृत्यु कलश के लिए मैं दिन की अस्थियाँ समेटे फिर हाज़िर हूँ,
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"रिश्ते" क्या होते हैं ? वो जो पैदा होते ही हमसे जुड़ जाते हैं या जो अपनी जिंदगी में हम जाने-अंजाने चुन लेते हैं, कभी दिल से महसूस कर, कभी मतलब के लिए.... मगर सवाल अब भी वही रहा आख़िर रिश्ते होते क्या हैं ? आजकल इसी बारे में सोच रहा हूँ, विचार बना रहा हूँ.... ना सोचता मैं मगर एक कारण के तहत सोचने पे मजबूर होना पड़ा, कुछ दिन बीते हैं सोचते हुए और निष्कर्ष कुछ इस तरह से निकाला :-
"रिश्ते" खून के होते हैं सही बात, हम जिन्हें चुन लेते हैं वो भी रिश्ते हैं.... मगर असली रिश्ते ना कभी बोले जाते हैं, ना सोचे जाते हैं बल्कि इन्हे दिल से महसूस किया जाता है और मन से निभाया जाता है.... इसी को पूरा कर पाने में शायद असमर्थ रहा हूँ मैं तभी इतने समय बाद तक उनकी नज़रों में, जिंदगी में मेरी अहमियत नही बन पाई है.... मगर कोशिशें जारी हैं और हो सका तो ज़रूर दिन आएगा जब उनकी ज़िंदगियों में एक इज़्ज़त, एक मुकाम होगा मेरा..... तभी जीवन सार्थक होगा.... बस एक गुज़ारिश खुदा तब तक इस जहाँ में रखना....
*
रेलवे स्टेशन एक ऐसी जगह जहाँ आज दूसरी दफ़ा में ऐसे किसी शख्स से मिला जिसके बारे में केवल सुना था.... अच्छा लड़का था उसे खुश रखेगा,,, बस छुटकी तूने कहा तो मैं आ तो गया मगर समझ ही नही आया की आ क्यों गया ??? कवाब में हड्डी लग रहा था में भोन्दु जैसा,,, थोड़ा सा असहज महसूस किया मैने तो उठ कर निकल गया..... मगर तू खुश थी तो मैं भी हूँ,,, तुझे पता ही है मैं पागल हूँ, मगर सच्ची तेरी खुशी के लिए कुछ भी करूँगा..... "अच्छी पसंद है डियर, बंगाली बाबू जॅंच रहे थे.."
*
और हाँ खास बनने की कोशिशें जारी हैं, पक्का एक रोज बनूंगा... याद रखना तू तो हमेशा मेरी जिंदगी का एक खास हिस्सा है,,,, मगर आज लगा अब वक्त कम है तेरे मेरे पास यूँ साथ साथ घूमने का रहने का.... क्योंकि बहना तुझे वो हमेशा खुश रखेगा जब तू उसके साथ चली जाएगी.... मगर तब मेरी असंतुलित जिंदगी किस ओर बहेगी ? कौन उसे संभालेगा ? कुछ नहीं पता ना, इसीलिए आज थोड़ा भावुक हूँ और उटपटांग सी बात कर रहा हूँ.... पर लगता है अब तेरे बिना रहने की आदत डालनी शुरू कर देनी चाहिए मुझे.... बहुत मुश्किल काम है, सोचने में ही आँखें नम होने लगी है.... सच्ची...
*
इति अस्थि
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Jun 12th, 2013 11:50 PM

ऐ दर्पण एक दिन और बीत गया है, मृत्यु कलश के लिए मैं दिन की अस्थियाँ समेटे फिर हाज़िर हूँ,
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दिन काफ़ी उर्जा लिए आया और अरसे बाद एक बेहतरीन दिन बीता... सकारात्मकता को महसूस किया हर ओर,,, उसपर छुटकी से मिलने गया.. समय का अभाव था मगर आज मेरी प्यारी बहन की तबीयत ज़रा खराब थी,, तो हर हाल में जाना ही था... छुटकी प्यारी बहन थोड़ा टेंसन कम ले रे,, अभी मैं जिंदा हूँ, हर कीमत में तेरी हँसी बरकरार रखने की कोशिश करूँगा इतना विश्वास रख मुझ पर.... तूने कहा था मिलकर कुछ बताएगी मुझे, कुछ सल्यूशन्स निकालने हैं तुझे, पर कोई बात ही नही करी तूने ऐसी.... चल तोड़ा आराम से निपट ले मेहमानदारी से, फिर आराम से मिलेंगे और बात को डिसकस करेंगे.... आज तेरे कुछ एस.एम.एस. ने तोड़ा सोचने पे मजबूर किया है की अभी अपना वजूद और मजबूत करना है ताकि तू मुझ पर भरोसा कर सके,,, आज दुख हुआ की मुझे केवल तेरे हंसते पन्नों को पड़ना है.... दुखी करा आज तूने मुझे,,,,, पर में खामोश उस वक्त का इंतेजार करूँगा जिस दिन तू मुझे सारे राज बताकर मुझे एहसास दिलाएगी की हा मैं भरोसा करने के लायक आज बन चुका हू..... सदा खुश रहना छुटकु,,, मैं हर परिस्थिति में तेरे साथ साए की तरह हूँ.....तोड़ा ख्याल अपना मेरी खातिर ही रख ले यार.... प्लीज़...
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इति अस्थि
शुभ रात्रि
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Jun 11th, 2013 11:58 PM

It's late night mirror, weather is awesome outside... Really its nyco as I recently arrived back frm the heat of Delhi... Life is good and in few past days positive friends surrounds me all around... They really tell me how to find positive aspects of life in any drastic situation... The people close to my heart will always remain special for me,,, Last night i read chtki's diary and it tensed me a lot... Dear u were my lifeline, in any cost I want c u happy... And as I always say Life is a flip flop between joys and sorrows,,, keep dat in mind dear... I'm always dere for u.... Dnt get tensed at all... "Everthing will be gud tomorrow.." I love u my sister from deep my heart... Keep in mind dat My life is stable with u only... I respect dat u dnt tell me about prblm dat day bt I realised dat and it hurts when u tell dat later..... Why u always forget that I know u better than u knw urself ??? Dnt repeat the scene in future...
Gd nyt mirror

May 30th, 2013 10:06 PM

Oh mirror lots of days gone I'm not able to face you due to time problem,
Some good news to deliver that these days life is somehow stable, tomorrow going for a priceless interview at "Wheels India Ltd.", I'm on the way to live life, No regret for past.... M Happy these days but Still she is in my mind, and that's Ok for me... I don't want to forget her... :)
Miss u chutki, as u were away from me, But I know your good wishes are with me always... Thanks to bare me, keeping my spark alive and give your precious time to me.... Stay connected always...
Hope to have a good news tomorrow, Miss chutki's diary entry from last two months, Hope to get it soon...
Good night..

May 11th, 2013 11:49 PM

Life is not good but I pretend it as good my dear mirror, Because I know at last I have to bare all mesh alone... If I die today it will break my parents who loves me lot, So i decide today dat I will live my life for the sake of those who have some impact of my death... Else living life is not fruitful today...
*
I'm changing myself today onwards as my dear ones have complaint that I create mess and talks more than enough... "M getting silent now.. " B happy and stay blessed...
*

May 05th, 2013 10:54 PM

ऐ मेरे प्यारे दर्पण एक बार फिर हाज़िर हूँ,, दिन बीत रहे हैं मगर मैं तटस्थ, भरा सा दिल है, तन्हाई भी मगर भीड़ में घिरी तन्हाई और अनसून हैं की निकलते नहीं... ज़्यादा लिख नही पाऊँगा मगर एक अंतिम कलाम जो महसूस किया पेश करता हूँ, "सबसे मिलो कोई रक्स नहीं मुझे, मगर मुझ नाचीज़ को भी कर लेते याद तो जिंदगी खुस्गवार होती..."
*
Whenever I got hurt, filled with huge grief nobody I found besides me, nobody bothers at all...
Everyone I found besides me, whenever they need me,,, No regret Coz I feel I was a candle who burnt itself giving light to others....
(Y)
Thank god almighty sending me to the world have no love, no trust at all....
Make me stone please.....

Apr 26th, 2013 1:13 PM

ऐ प्यारे दर्पण दर्द अब नासूर सा हो गया है, अपने हमेशा हरे रहने वाले ज़ख़्मों की नुमाइश के लिए मैं फिर तेरे पास आ पहुँचा हूँ... सुन इस बीच क्या क्या हुआ मेरी जिंदगी के साथ,
"बेकारी चरम पर है और समय भाग रहा है तेज और तेज, बस मैं एक जगह तटस्थ बुत बना सब देख रहा हूँ... कल इसी सिलसिले में एक जगह साक्षात्कार के लिए गया मगर भगा दिया गया, हा हा हा... उसके बाद छुटकी का फोन आ गया की एक काम नही बन रहा, मैने कहा चल ट्राइ कर वरना में शाम को देखता हूँ..... शाम को पता चला कि उसका काम नही बना तो मैं अपनी बहन के काम के सिलसिले में अपने उसूलों को ताक पर रख कर उनके घर पहुँचा जहाँ कभी नही जाता था,, उन्होने सुबह ९ बजे से पहले आने को कहा... मैने कॉल कर उसे बता दिया...सुबह जब उठा तो पौने नौ बाज रहा था मैं हड़बड़ा कर उठा तो एक मेसेज आया हुआ था छुटकी का कि "मैं नही आ रही, काम हो जाएगा",,, चलो बाड़िया बात की उसका काम हो रहा है, यही ज़रूरत थी.... मगर मेरी ज़बान का क्या कोई मोल नहीं ?? जो उसूल मैने तोड़े जिसकी खातिर, उसका क्या ?? हा हा हा... सच ही है मेरी कोई औकात जीते जी तो हो ही नही सकती,, जिस रोज रुखसत हो जाऊँगा शायद तब मेरे अपने समझ सकें कि मैं क्या सोचता था, क्या कर सकता था उनके लिए... मगर कोई नही मैं कल भी वैसे ही उनके काम आऊंगा जैसे आज..... किसी गिरह को लादे रखना क्या फ़ायदा दे सकती है ???? छुटकी झेंप सी रखी है, मगर प्यारी बहन मैं गुस्सा बहुत देर तक नहीं रह सकता वो भी तुझसे,,, और वैसे भी ऐसी बातों की आदत है मुझे.... तूने बताया नहीं की "डी" वाला कुछ सल्यूशन निकला की नही ??? या मुझे जानने का हक नहीं......?????"

*
कभी सोचा ही नहीं था की किसी से मोहब्बत हो सकती है मुझे, मगर ऐसी हो गयी की जिंदगी तितर बितर हो गयी है.... दिल छलनी लिए, होंठों पर नकली मुस्कान लिए बस चले जा रहे हैं.... ना रक्श किसी से बस जिए जाना है.... रुखसत पर छलनी ही सही दिल मगर आत्मा तृप्त होगी की जो भी किया पूरी ईमानदारी के साथ चाहे मोहब्बत हो, चाहे दोस्ती, चाहे रिश्ते निभाना.....
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हे ईश्वर मेरी खुशी तू जानता है, मुझे बस पहली और आख़िरी ख्वाइश समझकर वो दे दे.... ज़ुबान को शांत, दिल को सुकून दे ताकि मैं सब को खुशी बाँट सकूँ.... बस एक बार उस अपने से ज़रूर मिला देना जो मुझे पूर्णतः समझे.... तूने इस प्यारी वसुंधरा पर भेजा, तेरा बहुत बहुत धन्यवाद...
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इति अस्थि
*********

Apr 23th, 2013 00:23 AM

ऐ मेरे प्यारे दर्पण अजीब सी गली में आ पहुँचा हूँ मैं, शोर ही शोर है मगर एक शून्य, एक अनंत तक फैली खामोशी ... जो चीखती है और चीख चीख कर कहती है भाग जा, भाग जा.... मगर मैं तटस्थ कभी खुद को कभी मरी गली को देखता हूँ, और पाता हूँ मुखौटों का अजीब संसार, बाज़ारों में होते रिश्तों के मोल और अपनो के अपनो पर भोंके फरेब के खंजर.... अट्टहास करता हूँ मगर आँखों से आँसू टपकने लगते हैं और काँपते पैर खोजने लगते है कोई सहारा.... मगर फिर याद आता है की ये शहर मुर्दों का है जो अपनी संवेदनाएँ, भावनाएँ बाज़ार में बेच आए हैं, और अब पूरी तरह तैयार हैं आपकी संवेदनाओं पर हँसने के लिए, आपको आपकी संवेदनाओं में ही लपेटकर ठगने के लिए..... ये ही नियम है यहाँ टीके रहने का, खुद की खुदी बेचकर खुद की पहचान बनाए रखने का,,, औरों का पता नहीं मगर शायद यही कारण है की सांस कहीं लापता है और दम घुटने लगा है....
*
सुबह से शाम तक यूँ अकारण, निरुद्देश्य घर पर पड़ा रहना, मुझे खटक रहा है और अब लगने लगा है क़ि मैं घर पर बोझ बनने लगा हूँ,, यही कारण है मेरी झुंझलाहट का, मेरी खीज का,, मगर मैं जान बुझ कर किसी का दिल नही दुखाता मगर हालात मुझसे वो कराते हैं.... मगर हे परम पिता हर बात के बाद जितना वो दुखी होते हैं उन्हे टीस पहुँचती है, उससे ज़्यादा मेरा दिल छलनी होता है..... तू किसी भी कीमत पर मुझे माफ़ ना करना और हर बार दिल दुखाने के एवज में मुझे कठोर से कठोर दंड देना..... मेरी बेकारी मेरी सबसे बड़ी दुश्मन बन गयी है, कोई भी कदम नही उठा पा रहा हूँ अपने विकास की ओर,,, निराशा निराशा बस अथाह निराशा.... इस संघर्ष में काई लोग साथ छोड़ गये मेरा और इसी वजह से बचे हुए अपनों को खोने का दर मुझे घेरे रहता है.... मेरे बार बार कहने पर मानता हूँ झुंझलाहट उन्हे होती होगी मगर मेरी भी मजबूरी है, मैं क्या कर सकता हूँ...... हे परम पिता यही हालात बने रहे तो मैं जल्द ही या तो मर जाऊँगा या पागल हो जाऊँगा, और दोनो ही परिस्थितियों में मेरी आत्मा मुझे सदा धिक्कारेगी और में अपने बाद एक कमजोर उदाहरण छोड़ जाऊँगा और लोग मेरी हालत का दोषी उसे ठहराएँगे जो मुझे मुझसे भी ज़्यादा पसंद है, और ये मुहे स्वीकार नहीं, इसलिए हे ईश्वर अपनी दृष्टि मुझपर कर और हिम्मत दे मैं उठु और फिर से इस रण को जीतने के पथ पर अग्रसर हो जाऊं....
*
आज इतने दर्द में ऐ दर्पण रूबरू हो रहा हूँ की बता नही सकता.... फिर मिलूँगा, दुआ करना अगली बार मेरे आँसू से तेरे पन्ने ना भीगें.... छुटकी खुश रहना बहन,,, अपनी तबीयत का ख़याल हो सके तो अपने इस सिरफिरे भाई के लिए रख ले ना... जितना दुखी मैं खुद की तकलीफ़ से नहीं उससे ज़्यादा टेंशन मुझे तेरी है,,,, प्लीज़ यार तोड़ा ख़याल रख अपना क्योंकि आज के मौजूदा दौर में मुझे समझने वाला एक ही शख्स है,, और वो तू है डियर... अब अपने घुटने के चरम दर्द के साथ आज को विराम देता हूँ धन्यवाद.
शुभ रात्रि
इति अस्थि

Apr 17th, 2013 10:24 PM

आँखों में तेरे साए,
चाहूं तो हो ना पाए,
यादो से तेरी फासला,
हाए
जाके भी तू ना जाए,
ठहरी तू दिल में हाए,
हसरत सी बनके क्यों भला ???
क्यूँ याद करता हूँ ???
मिटता हूँ,,, बनता हूँ
मुझको तू लाई ये कहाँ ???
बेनाम रिश्ता वो...
बेनाम रिश्ता वो, बेचैन करता जो
हो ना सके जो बयान दरमियाँ
दरमियाँ दरमियाँ
कुछ तो था तेरे मेरे दरमियाँ....

Apr 12th, 2013 3:50 PM

बहुत दिन हुए प्यारे दर्पण तुझसे रूबरू ना हो सका, क्या करूँ ये जिंदगी ना रुकती है ना रुकने देती है, बस हमें अपने साथ घसीटते रहती है... और मैं भी बिना उफ्फ किए उसके साथ घिसटता रहता हूँ... आज जब महसूस हुआ की बीते दिनों की अस्थियों का भर बहुत बाद गया है तो याद आई तेरे पास सुरक्षित रखे मेरी जिंदगी के अस्थि कलश की,, बस मैं चला आया अपने बीते दिनों की अस्थियाँ उस कलश को अर्पण करने के लिए...
*
इस बीच किसी खास मकसद से दिल्ली गया था, जिस सिलसिले में गया था वो काफ़ी हद तक संतोषजनक रहा.... अजीब सी खामोशी लिए दिन बीत रहे हैं और मैं खुद में अनेकों बदलाव महसूस कर रहा हूँ, खुद को हर वक्त अकेला पाता हूँ, ऐसा लगता है मानों संसार में ऐसा कोई है ही नहीं जो मुझे, मेरे मन को समझ सके... सच बोलूं तो आजकल मान होता है की फुट कर रोता रहूं, क्यों? ये नहीं पता मगर शायद तब ही हल्का हो सकूँ.....
*
एक चीज़ जानी की अंत में हमारी सबसे बड़ी ताक़त ही हमारी सबसे बड़ी कमज़ोरी बन जाती है... ऐ प्यारे दर्पण ये बता की इस जहाँ में क्यों सच्चे लोगों का अभाव है? और सच्चों को परखने वेल मानुष भी अलोप हो गये हैं क्या?
*
क्या क्या सोचा था, बहुत कुछ करना था, मगर वो कर बैठा जिस राह जाना ही ना था.... "मलिक" आपको नहीं भूल पा रहा हूँ मैं... हर वक्त बस उस निष्ठुर की याद आ जाती है, जो अचानक यूँ गायब हो गयी जैसे मेरा कोई अपना वजूद ही ना था... हे ईश्वर तू मुझे उनसे मिला के क्या समझना चाहता है जो मेरे हैं ही नही, बस दो कदम चलकर मेरा साथ छोड़ने वाले है, या छोड़ चुके है.....
*
किसी से कह भी नहीं सकता,, इतना परेशन तो मैं कभी भी ना था, किसी कम में मान नहीं लग पा रहा... लोग कहते है की तू दिमागदार है मगर हे ईश्वर अपनी बारी में कहाँ गया मेरा दिमाग़, मेरी समझ?????? सच कह रहा हूँ किसी रोज जिंदगी से भरपूर आज मेरा इससे विश्वास उठ चुका है... जीने का मन ही ना रहा,,, फिर भी घिसट रहा हूँ.... शायद ये ही जिंदगी है, और जानें वालो को कौन रोक सकता है??? मगर कोई कसे जा सकता हमे गुनेहगार बनाकर????
*
छुटकी मेरी बात याद रखना और मेरे बाद उसे पूरा ज़रूर करना बहना.... सदा खुश रहना, जाने कौन सा शब्द आख़िरी हो....
*
ऐ खुदा खुद से नाराज़ हूँ, और बहुत ही ज़्यादा अशांत है मन,, शांति बख्स मुझे और धैर्य, सुकून का संचार कर.... रुखसत से पहले पल भर ही सही मुझे जो समझे से मुलाकात ज़रूर नसीब कर.... "धन्यवाद"...
*
***हे ईश्वर मुझे सफल करना मेरी कसम पूरी करने में, धैर्य देना, शक्ति देना की अब इन लबों पर उसका नाम ना आए कभी....****
हे ईश्वर सबका भला कर, सबके सपने पूरे कर. मेरे पापों को कभी माफ़ मत करना, ग़लती से जो भलाई कभी मैने की वो मेरे अपनों में बाँट देना ईश्वर.... "मुझे किसी चीज़ की आरजू नहीं हैं, जो मेरा है वो मुझे मिल के रहेगा.."
इस परम सत्य धरा पर इतने अधिक तजुरबों के बीच मुझे भेजा तेरा बहुत बहुत धन्यवाद......
इति अस्थि...

Apr 2nd, 2013 10:50 PM

अथाह रौद्र रण ये जीवन मेरे प्यारे दर्पण, काई रोज मरे, अस्थि बने, मैने अस्थि कलश में डाले जो तुझे सुपुर्द किए हूँ... उसी कलश में आज की अस्थियाँ लिए हाज़िर हूँ,,,, आअज सुबह जब गैस बुक करने गया तो मूड तोड़ा बदला, कलुषित स्वप्न से बाहर निकला और असल जीवन को सामने पाया... ईश्वर का कितना प्यारा सृजन है ये मानव शरीर, ये दुनिया, ये ब्रह्माण्ड... और मैं हूँ की केवल अपने तक सीमित रह गया.... वहाँ से घर लौटा और घंटो तक सोचता रहा क़ि हर बार में स्याह जिंदगी जीता हूँ, बेफ़ाजूल दुखी होता हूँ और खुद के दिल को भी दुखाता हूँ.... मेरे इस बर्ताव से मेरे अपने भी दुखी होते होंगे,,, सोचने के बाद इस सारांश पर पहुँचा क़ि "हे ईश्वर ये रिश्ते, ये मोहजाल मेरे लिए नहीं है..." कहीं ना कहीं ये ही मेरी सबसे बड़ी कमज़ोरी है.... और इन्हे खो देने का सबसे बड़ा डर... इसी से पार पाना है... बस उर्जा का नवसंचार कर...
*
कुछ रीत जगत की ऐसी है,
हर एक सुबह की शाम हुई,
तू कौन है? तेरा नाम है क्या?
सीता भी यहाँ बदनाम हुई.......
*
उसे खुश रखना, छुटकी को खुश रखना, सारे सपने पूरे करना, कभी ज़रूरत पड़े तो बस मुझे उनके पास पहुँचा देना ईश्वर.... तूने इस वसुंधरा पर भेजा 'धन्यवाद'....
*
खुश रहना छुटकी, तू हँसेगी तो मैं भी, तू जानती है ना ???? बता दूं आजकल हँसने के मौके पे भी हंस नही पा रहा हूँ.... शायद तू खुश नही..... "खुश" रह बहना....
*
ऐ प्यारे दर्पण आज एक लंबा विराम ले रहा हूँ,,, देख तुझे अब क्या पता मिलूं या ना मिलूं......
*
इति अस्थि
शुभ रात्रि

Apr 1st, 2013 10:31 PM

ऐ अज़ीज प्यारे दर्पण ये दुनिया और इसके लोग भौतिकता में कुछ यूँ लिप्त हैं क़ि चाहते ही नहीं उससे बाहर आएँ...... आज दिन भर ये सोचता रहा की एक मोड़ के बाद तो इंसान का अकेले इस जीवन पथ पर चलना मुश्किल हो जाता होगा,,, और शायद उसी वक्त हमसफ़र की असल ज़रूरत पड़ती होगी...... ये ही वो वक्त होता होगा जब इंसान की धमनियाँ तक उसका साथ छोड़ने को बेचैन रहती होंगी,,, दोस्तों के नकाब भी कब के बेपर्दा हो चुके होते होंगे,,, और हम एक ठूंठ से बोझ बनकर एक कोना पकड़ चुके होते होंगे..... और जब शरीर ही साथ ना देने पर आमादा हो तो कोई और कहाँ साथ देगा,, सबकी अपनी व्यक्तिगत जिंदगी होती है.... ज़रूरी तो नहीं की जिन्हे हम खास से उपर की श्रेणी दें,,, उनकी जिंदगी में भी हमारा वही स्थान हो..... "ऐ जिंदगी तू कितनी कठिन है,,, है तो जनता था,,, इतनी है अब जान रहा हूँ...."
*
आजकल अजीब सा हो गया तन भी मन भी, सब धीरे धीरे दूर होते जा रहे है,, जो हैं वो भी अपनी उलझनों में कुछ व्यस्त है,,, और ये तो नहीं हो सकता ना कि जब मेरी जिंदगी उलझी तब भी मैं वैसा ही रहा जैसा था.... आँसुओं के सैलाब के मौसम में भी सबने मेरे मुस्कुराते लब देखे,,,, ऐ खुदा क्या मैं केवल इसलिए बनाया गया हूँ की मेरे अपने मुझे तब याद करें जब उन्हे ज़रूरत हो,,,, मैं बीमार था, कोई मुझे भी याद करता तो शायद हौंसला बँधता... मगर अफ़सोस सबकी व्यस्तता आज इतनी बढ़ गयी जितनी मेरी पंद्रह घंटे काम करते वक्त भी ना हो सकी....
*
अकेले चलना है,
अकेले जीना है,
इस जहाँ में,
अपना कोई साथी कहाँ ?
कमजोर हैं रिश्ते,
कमजोर इनकी नींव,
खोखले वादों के शोर,
इन्ही पर खड़े उम्मीदों के,
कमजोर स्तंभ,
व्यक्तिगत जिंदगी से हारती,
असल रिश्तों की नींव,
चल "बाबा" मरीचिका से दूर,
शायद इस झूठ के मोह जाल में,
अपना गुज़रा नहीं.....
*
आज भी छुटकी तूने मुझ बेवकूफ़ को बेवकूफी का ताज बख्सा है,,,, सुबह से तेरे कॉल का इंतेजर करता रहा,,, मैं करूँ ये सोचा मगर रुक गया कहीं तू व्यस्त ना हो कर के,,,, मेसेज का जवाब भी तू ना दे सकी,,,, सोच अभी टना व्यस्त है तू की अपने भाई के लिए तेरे पास वक्त नहीं है,,, तो बता कल जब तू मशगूल हो जाएगी जिंदगी में, अपने परिवार में, तब कहाँ से निकल सकेगी वक्त..... बस में वहीं रह जौंगा जहाँ तू छोड़ जाएगी..... :'( ........ तू हर बार भूल जाती है की मैं कितना भी व्यस्त होने पर तेरे इए वक्त कैसे निकल लेता हूँ,,,, क्योंकि कोई और है ही नहीं इतना अपना,, जितना करीब तू है....
*
***हे ईश्वर मुझे सफल करना मेरी कसम पूरी करने में, धैर्य देना, शक्ति देना की अब इन लबों पर उसका नाम ना आए कभी....****
हे ईश्वर सबका भला कर, सबके सपने पूरे कर. मेरे पापों को कभी माफ़ मत करना, ग़लती से जो भलाई कभी मैने की वो मेरे अपनों में बाँट देना ईश्वर.... "मुझे किसी चीज़ की आरजू नहीं हैं, जो मेरा है वो मुझे मिल के रहेगा.."
इस परम सत्य धरा पर इतने अधिक तजुरबों के बीच मुझे भेजा तेरा बहुत बहुत धन्यवाद......
इति अस्थि...

Mar 31th, 2013 11:22 PM

हर दिन यूँ गुजर जाता है जैसे कुछ होना ही ना था, अंत में खुद को वहीं पाता हूँ , उसी नुक्कड़ के पास जहाँ से सुबह छाई के प्याले के साथ मैं दिन के सफ़र पर निकला था....
*
एक लंबे अरसे बाद एक मित्र से मुलाकात हुई, ये ही कुछ तेरह साल हुए थे उससे मिले हुए.... काफ़ी वक्त उसके साथ रहा, यूँ तो कल रत से बुखार से शरीर ताप रहा था, अगर कोई इतना पुराना मित्रा ना होता तो मैं घर से ना निकलता.... दूसरा दिन भर उस रज़ाई में पड़े पड़े भी एक झुंझलाहट सी हो गयी थी.... आआज एक चीज़ जो उससे मिलकर जानी कि जाने कौन सी मुलाकात आख़िरी हो या अनंत तक के सफ़र के बाद फिर हो... कुछ पता नहीं, इसीलिए हर मुलाकात को इतना यादगार बना दो की कल कितना ही लंबा सफ़र हो,यादों की ताज़गी जिंदगी महकाती रहें....
*
"इन्ही दरख्तो से गुज़रे थे प्यारे से वो पल,
आज इन्ही से खामोशियाँ गुजरती हैं.
यूँ तो सदियों से मैं तन्हा रहा था,
मगर आज हर पल तेरी आरजू पलती है."
*
***हे ईश्वर मुझे सफल करना मेरी कसम पूरी करने में, धैर्य देना, शक्ति देना की अब इन लबों पर उसका नाम ना आए कभी....****
हे ईश्वर सबका भला कर, सबके सपने पूरे कर. मेरे पापों को कभी माफ़ मत करना, ग़लती से जो भलाई कभी मैने की वो मेरे अपनों में बाँट देना ईश्वर.... "मुझे किसी चीज़ की आरजू नहीं हैं, जो मेरा है वो मुझे मिल के रहेगा.."
इस परम सत्य धरा पर इतने अधिक तजुरबों के बीच मुझे भेजा तेरा बहुत बहुत धन्यवाद......
इति अस्थि...

Mar 30th, 2013 10:52 AM

रोज दिन बीतता है, और ऐ प्यारे दर्पण मैं उन दिनों की अस्थियाँ तुझ में उडेल देता हूँ... इस भीड़ में, अपनों का चारों ओर दायरा फैला है,, मैं हंसता भी हूँ, बोलता भी हूँ मगर मेरी खामोशियाँ, मेरे दिल के राज कोई भी नही समझ सका आज तक.... अफ़सोस तो होता है मगर एक अतृप्त संतुष्टि भी कि मैं अपने पथ "ब्रह्मराक्षस" बनने में अग्रसर हूँ.... किसी ने अभी हाल में कहा की "भगवान आपको आपकी खुशियाँ, सपने दे." मगर क्या ये कहने से पहले वो ये नहीं जानते थे की मेरी खुशी, मेरा सपना केवल वो हैं.... पलटकर बीते हुए सालों की ओर देखता हूँ तो पता हूँ तन्हा, खामोश मैं,,, और आज एक भीड़ घेरे है मगर मलिक आपके बिना तन्हाई का घेरा कितना घनघोर हो गया है.... आपका और मेरा क्या रिश्ता है ? , आप मेरे बारे में क्या सोचते हो ? कुछ भी पता नहीं, मगर हर बार ये खामोशियाँ एहसास करती हैं की शायद अभी भी नाउम्मिदी के बदल नही छाए हैं... आपने मेरे दिन को याद रखा और मेरी खुशियों को दोगुना कर दिया.... "मगर आज भी आपकी खुशियाँ, आपकी चाहत मेरी भी हैं,, उन्हें आप तक पहुँचने में अगर मैं खुद टूट भी जाऊं तो मंजूर होगा...." शायद बेपनाह मोहब्बत, सच्चा दिल आज भी लोगों को पसंद नहीं....
*
छुटकी भी देहरादून गयी है और मैं यहाँ अकेला हूँ और इन बड़े स्याह दिनों को अकेले काट रहा हूँ,, और शायद अब आदत भी डाल लेनी चाहिए,, क्योंकि तू या कोई भी कितने भी वादे करे, जाना सबने है... और किसी के बिना किसी की जिंदगी रुकी नहीं, ना ही रुकेगी... आदतें अक्सर हमें ही कमजोर और कमजोर बना देती हैं... मगर कमज़ोरियों का नाम ही जिंदगी है....
*
ऐ खुदा खुद से नाराज़ हूँ, और बहुत ही ज़्यादा अशांत है मन,, शांति बख्स मुझे और धैर्य, सुकून का संचार कर.... रुखसत से पहले पल भर ही सही मुझे जो समझे से मुलाकात ज़रूर नसीब कर.... "धन्यवाद"...
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***हे ईश्वर मुझे सफल करना मेरी कसम पूरी करने में, धैर्य देना, शक्ति देना की अब इन लबों पर उसका नाम ना आए कभी....****
हे ईश्वर सबका भला कर, सबके सपने पूरे कर. मेरे पापों को कभी माफ़ मत करना, ग़लती से जो भलाई कभी मैने की वो मेरे अपनों में बाँट देना ईश्वर.... "मुझे किसी चीज़ की आरजू नहीं हैं, जो मेरा है वो मुझे मिल के रहेगा.."
इस परम सत्य धरा पर इतने अधिक तजुरबों के बीच मुझे भेजा तेरा बहुत बहुत धन्यवाद......
इति अस्थि...

Mar 26th, 2013 10:56 PM

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ऐ दर्पण एक दिन और बीत गया है, मृत्यु कलश के लिए मैं दिन की अस्थियाँ समेटे फिर हाज़िर हूँ,
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अजीब इत्तेफ़ाक है जिंदगी "आज ही का दिन था, पिछले साल रौनक थी, दोस्तों का हुजूम संग था, मगर आज ना वो भीड़ थी, ना हुल्लड़, संग कुछ ही दोस्त थे... मगर खुश हूँ की सच्चे थे.... " कभी कभी सोचता हूँ की अगर छुटकी को आज की तारीख में मुझ से दूर कर दिया जाए तो जिंदगी कैसी हो जाएगी मेर...??? सोचने में ही रूह कांप जाती है, मगर ये तो एक दिन होना ही है.....
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काफ़ी शांत तरीके से चौबीसवां जन्मदिन बीता,, अपनो की बधाइयों से दिल रोमांचित रहा..... सबसे खुश करने वाली बात की आज सुबह उसने कॉल करके मुझे बधाइयाँ दी... बहुत खुश हूँ, लग रहा है की जहाँ मैं हू इसे ही सातवाँ आसमान कहते हैं....
*
"ऐ खुदा कभी मिलेगा तो शिकायत नहीं, तुझे अपना दर्द ए दिल सुनाएँगे,
तेरी आँखें भी ना हुई नम, तो खुद की खुदी मिटा दूँगा मैं......"
*
ऐ खुदा सबको खुश रखना,,, छुटकी तेरी डाइरी एंट्री का इंतेजार करता करता सो रहा हूँ..... "तू ठीक हो बस ये ही मुझे खुश कर देगा..."...
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***हे ईश्वर मुझे सफल करना मेरी कसम पूरी करने में, धैर्य देना, शक्ति देना की अब इन लबों पर उसका नाम ना आए कभी....****
हे ईश्वर सबका भला कर, सबके सपने पूरे कर. मेरे पापों को कभी माफ़ मत करना, ग़लती से जो भलाई कभी मैने की वो मेरे अपनों में बाँट देना ईश्वर.... "मुझे किसी चीज़ की आरजू नहीं हैं, जो मेरा है वो मुझे मिल के रहेगा.."
इस परम सत्य धरा पर इतने अधिक तजुरबों के बीच मुझे भेजा तेरा बहुत बहुत धन्यवाद......
इति अस्थि...
"शुभ रात्रि"

Mar 25th, 2013 11:33 PM

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ऐ दर्पण एक दिन और बीत गया है, मृत्यु कलश के लिए मैं दिन की अस्थियाँ समेटे फिर हाज़िर हूँ,
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देखते देखते कई दिन यूँ ही नष्ट हो गये ऐ मेरे प्यारे दर्पण,,, इस बीच काफ़ी थकान, झुंझलाहट, और अपनी तन्हाई को दिल से महसूस किया मैने, पंद्रह को जब मेरठ में था तो दीपू भी जा चुका था पेपर देने तो तन्हाई का आलम कुछ ज़्यादा छा गया और मैने लिखा :-
"सन्नाटो के सहर में,
अल्फाजों के दरिया को जाने कौन?
मतलबी, फरबी ये जहाँ,
सच्चा दिल यहाँ पहचाने कौन?
मुखौटों में छुपाकर जमीर अपना,
अक्स की मोहब्बत को जाने कौन?
टूटा बहुत, खुद को बिखरने ना दिया मैने,
कौन हूँ मैं, मेरी औकात जाने कौन?
एक रोज से रोया, एक रोज तक रोया,
आँसुओं को हँसी में छिपा लिया,
आख़िर मेरे दिल के दर्द को जाने कौन?
रोज मुक्टलीफ़ होता हूँ उस दौर से जब संग थी तू,
उसी से जीटा हूँ, वर्ना मारा हूँ या जिया ये जाने कौन ?
ग़लत सही एक नाकाम आरजू बुनी मैने,
तूने मुँह मोड़ा तो जाना मोहब्बत है कौन?
अभी भी कलाम बुन रही है दिल ए अल्फ़ाज़ मेरे,
मगर दिल का दर्द आँखों की नामी जाने कौन????
*
दिल्ली सहर मुझे कभी पसंद नहीं मगर इस बार जब वहाँ गया तब से लौटने तक, जब जब भी में उन जगहों से गुजरा जहाँ पिछली बार ही हम साथ थे और आज अलग..... तो दिल बहुत उदास रहा,,, मगर बड़ना जिंदगी है.....
मेरा सालों से मानना है की जन्मदिन तो हम जश्न के साथ मानते हैं और कहीं ना कहीं वो खास दिन जो हमारे जन्मदिन से ठीक पहले वाला दिन है बेचारा उपेक्षित रह जाता है.... जबकि हमारे पिछले पूरे एक साल के कर्म, दुष्कर्मों का वो साक्षी रहा होता है... और जाते जाते हर हसीन पल को हमारी यादों में बसाकर चुपचाप इतना दूर चला जाता है की फिर कभी नहीं आता,,, मेरा भी कल जन्मदिन है,,, चौबीस वर्ष पूरे हो जाएँगे मुझे और बस तेईसवें वर्ष के आख़िरी टीस मिनिट बचे है दर्पण... और मैं तेरे साथ मुक्तलिफ हूँ.... एक चीज़ जो कबूल करता हूँ "मैं उसे चाहता हूँ,,,," एक कोशिश "मैं आगे बड़ूँगा...."...
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देखो कल कौन कौन अपने मेरे दिन को हसीन बनाते हैं, अभी दर्पण इतना ही,
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***हे ईश्वर मुझे सफल करना मेरी कसम पूरी करने में, धैर्य देना, शक्ति देना की अब इन लबों पर उसका नाम ना आए कभी....****
हे ईश्वर सबका भला कर, सबके सपने पूरे कर. मेरे पापों को कभी माफ़ मत करना, ग़लती से जो भलाई कभी मैने की वो मेरे अपनों में बाँट देना ईश्वर.... "मुझे किसी चीज़ की आरजू नहीं हैं, जो मेरा है वो मुझे मिल के रहेगा.."
इस परम सत्य धरा पर इतने अधिक तजुरबों के बीच मुझे भेजा तेरा बहुत बहुत धन्यवाद......
इति अस्थि...
"शुभ रात्रि"

Mar 13th, 2013 9:56 PM

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ऐ दर्पण एक दिन और बीत गया है, मृत्यु कलश के लिए मैं दिन की अस्थियाँ समेटे फिर हाज़िर हूँ,
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दिन काफ़ी मस्त था, दिन भर यारों के बीच ही था तो काफ़ी मज़ा आया.... एक अच्छी चीज़ की आज मेरा काफ़ी पहले भरे हुए एक फॉर्म का प्रवेश पत्र आ गया.... अब काफ़ी मेहनत करनी है मगर उससे पहले एक टूर बनाना पड़ेगा.... १५-१८ तक.... उसके बाद सब कुछ बंद और तगड़ी मेहनत शुरू... "सॉरी छुटकु तेरा सर्प्राइज़ होली के बाद मिलेगा डियर,,, अभी मेहनत करने का समय आ गया है....."
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डियर तू मज़े करना और प्लीज़ अपना ख़याल रखना रे,,,, जल्दी मुलाकात होगी तुझसे.... अभी काई महत्वपूर्ण कम निपटने है मुझे....
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***हे ईश्वर मुझे सफल करना मेरी कसम पूरी करने में, धैर्य देना, शक्ति देना की अब इन लबों पर उसका नाम ना आए कभी....****
हे ईश्वर सबका भला कर, सबके सपने पूरे कर. मेरे पापों को कभी माफ़ मत करना, ग़लती से जो भलाई कभी मैने की वो मेरे अपनों में बाँट देना ईश्वर.... "मुझे किसी चीज़ की आरजू नहीं हैं, जो मेरा है वो मुझे मिल के रहेगा.."
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