तेरी हर अल्फाज़ मेरे रूबरू हैं आज भी,

 तेरे दिल में उतर न सके हम मगर

मुकम्मल मेरी मोहब्बत तुझिसे है आज भी,

यूँ तो तुझसे रोज मिला करता हूँ

तुझसे न जाने कितनी बातें किया करता हूँ

मगर तेरी जुल्फों की वो लटें जो आ जाया करती है 

तेरे मुखरे पर उन्हें अपनी उँगलियों से लपेटने की ख्वाहिस

मेरा दिल करता आज भी है,

जानते हैं हम की तेरे ख्वाबों में मेरी परछाई तक नहीं है

मगर तेरी परछाई बन तेरे साथ चलने की हसरत आज भी है,

हाँ तुझे इंतजार होता होगा सुनने को आवाजें किसी और की

मगर तेरी हर अल्फाज़ मेरे रूबरू आज भी है !!!

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