तेरा पीड़ चुराने की आरजू में

ये कैसा दर्द उधार आप ही ले बैठे हम,

निकले तो थे तुझे हँसी का आशियाँ दिलाने

ये कैसा आब-ए-चश्म आप ही ले बैठे हम,

संजोना चाहा ख्वाब नैनों में तेरे खुशियों के

न जाने कब आप ही तुझको ख्वाब अपना बना बैठे,

विभावरी काबिज हो तेरी अब्सरों पे

ये जद्दोजहद जो हमने की,

दर्मयाँ इस जुस्तजू मालूम न चला हमको

कब आप ही अपनी रैन उड़ा बैठे,

तेरा पीड़ चुराने की आरजू में....।।

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