रोज सुनता हूँ,
आज उसके साथ हो गया,
फिर सोचने लगता हूँ, पता नई कल किसके साथ होगा?
फिर सोचता हूँ, ये कब बंद होगा?

रोज सुनता हूँ, कभी एक के साथ दस लोगो ने मिलकर कर दिया,
तो कभी एक साथ पांच लोगो ने मिल कर कर दिया,|
फिर सोचता हूँ ए दरिंदगी कबतक चलेगा?

रोज सुनता हूँ, किसी ने पांच साल के बच्ची के साथ कर दिया,
तो किसी ने 11 साल के बच्ची के साथ, किसी के साथ चाचा ने कर दिया,
तो किसी के साथ उसके मामा ने
फिर सोंचता हूँ, हमारे समाज का क्या होगा?

रोज सुनता हूँ,
किसी के साथ करके उसे फांसी पे चढ़ा दिया,
तो किसी के साथ कर के बेदर्दी से मर दिया
फिर सोचता हूँ ये सब कब बंद होगा?

रोज सुनता हूँ,
पुलिस वाले रपट नही लिख रहे हैं.
तो पुलिसवाले रपट वापस लेने को कह रहे है|
फिर सोचता हूँ ये कब सुधरेंगे?

रोज सुनता हूँ,
कड़े कानून बनने चाहिये,
उसे फांसी होनी चाहिये|
फिर सोचता हूँ, क्या कानून बनने से ए सब बंद हो जायेंगे?

फिर देखता हूँ,
एक दिन, कड़े कानून बन गये हैं,
फिर देखता हूँ एक दिन, उसे फँसी की सजा हो गयी हैं.

और फिन सुनता हूँ,
एक दिन, आज उसके साथ गैंग ने मिलकर किया,
और गले मे फंडा डाल वृक्ष पे लटका दिया

फिर सोचता हूँ, ये सब बंद होगा भी की नही?
फिर सोचता हूँ, कड़े कानून से क्या हुआ?
फिर सोचता हूँ, हमारी मानसिकता बदलेगी की नही?
फिर सोचता हूँ, उनका सामजिक बहिस्काार होगा की नही?

अमित सिंह

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