आज विजयदशमी है, रावण वध व् माता के प्रतिमाओं के विसर्जन के साथ दुर्गा पूजा समाप्त होने वाला है. इस साल की दुर्गापूजा तो आज समाप्त हो रही है लेकिन मैं अपने अपने गॉव अपने शहर के उन दुर्गापूजाओं को नहीं भूल पा रहा हूँ. उन दिनों को फिर से जीने की बड़ी तीव्र इच्छा मन में होती रहती है, लेकिन आज के इस भग-दौर और व्यस्त जिन्दगी में एसा संभव नहीं हो पा रहा है..
इस बार पांचवा साल गुजर रहा है, अपने शाहर का दुर्गापूजा बिना देखे हुए.... वो भी क्या दिन थे जब हम पांच-छह दोस्त ऋषि राज, चंदन, विजय, रौशन, जनार्धन और रजनी(भैया जी ये लड़का है लड़की नही समझ लेना) कई दिन पहले से अपने शहर दरभंगा के दुर्गा पूजा देखने का प्लान दुपोलिया और मठिया पर बैठ कर बनया करते थे...
हमेशा अष्टमी या नौवी का प्लान फिक्स होता था, निर्धारित दिन को हम सभी लोग अपने दुचक्रिय वाहन(साईकिल) से 5 बजे के आस-पास घर से निकल जाते थे. 1 घंटे का रास्ता हमलोग 2 घंटे में तय करते थे. इस द्वरान हंसी-मजाक, एक दुसरे के चिढाने में और एक दुसरे का टांग खीचने का काम चलता रहता था... सभी दोस्त मुझे टारगेट कर लिया करते थे... मुझे गुस्सा दिलाने के बाद ही दम लेते थे... फिर सभी दोस्त मिल के हमारे गुस्से को शांत करने का अथक परस करते थे. मैं भी कबतक गुस्सा रह सकता था.. आखिर सब के सब अपने प्रिय मित्र जो थे, अपने गुस्से को थूक कर आगे की ओर बढ़ जाते थे.
दरभंगा पहुंचने के बाद हमलोग अपना वाहन(साईकिल) किसी परचित के यहाँ पार्क करते थे.. और पैदल ही निकल परते थे शहर के गली-गली में सजे पूजा पंडालो के दर्शन के लिए. एक गली एक मोहल्ला ऐसा नही छुटता था जहाँ हमलोग नहीं जाते हों.. सैदनगर, मौलागंज, नका 6, जेल ग्राउंड, नीम चौक, शिवाजीनगर, हसन चौक हुते हुए जब हमलोग कटहलवारी पहुंचते तो ३-4 बज गए होते थे...
5 नका के पास 60 साल पुराणी जलेबी के दुकान में गर्म-गर्म जलेबी जरुर खाते थे.. और राजू स्वीट के सिंघारा या चाट का तो जबाब ही नहीं था...
सारी रात लम्बे-लम्बे लाइनों में लग के माता का दर्शन करते हुए हमलोग थक के चूर हो गए होते थे. थके हारे हमलोग कटहलवारी पूजा पंडाल में लगे कुर्सियों पे पसर जाते थे. 5 बजे तक अपने परचित के घर पे आते थे. अपना-अपना वाहन उठाते थे और घर की ओर चल देते थे.
4-5 साल हो गए हैं इस क्रम को टूटे हुए... हर साल दुर्गापूजा के समय में उन दिनों को याद करता हूँ... काश फिर से वो दिन वापस आते.... काश फिर हम सरे दोस्त एक साथ दुर्गा पूजा देखने जाते... काश हमलोग सब इकठ्ठे फिर से मिल पाते... समोसा खाते, जलेबी खाते, वो हमे गुस्सा दिलाते.. फिर मनाते....काश ऐसा फिर से हो पता.... काश ... काश... काश....

अमित सिंह

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