फुर्सत के पल में कहानियाँ लिखने का शौक कब से हो गया ये नहीं पता लेकिन कुछ लिख लेता हूँ तो मन हल्का सा हो जाता है | लाल साडी, लाल बिंदी, लिपिस्टिक ये सब न जाने कब से मेरे पसंदीदा विषय हो गए ये भी कह नहीं सकता, फिर भी कुछ भी लिखना है तो लिख लिया करता हूँ | समय के चक्र ने जीवन का इतना व्यस्त कर दिया की कभी अकेले बैठने का मौक़ा ही नहीं मिलता | कितनी ही मेरी कहानियाँ नोटबुक से निकलने को छटपता रही ये भी नहीं पता लेकिन चाह कर भी फुर्सत के दो पल नहीं निकाल पाता |

 

आज फिर थक सा गया | कार्यालय में बैठा था कि पीछे से फुल बेचने वाला आता दिख गया | रंगबिरंगी फूलों से सजी टोकरी देख कर मन प्रफुल्लित हो गया तो कार्यालय सजाने के लिए कुछ फूल खरीद लिया | तभी पीछे से किसी साथी ने टिपन्नी कर दी तो याद आया फुल्होरी का मौसम हैं | नवविवाहिता सब अभी फूलों से सजी डाला लेकर गीत गाती हुई गाँव के हर गली में दिख जाती हैं | गीत संगीत हंसी ठिठोले से हर गाँव का माहौल त्याहारों जैसा हो जाता |

 

तभी बचपन की यादों में खो सा गया | शाम में गाँव के गलियों, खेत खलिहान का क्या नजारा होता था | झुण्ड बना कर लड़कियां गाना गाते हुए जब आती तो हम लोग घर से दौड़ कर रोड पर चला आया करते | आपको लगता होगा की देखने के लिए... लेकिन यहाँ माजरा ही दुसरा होता था, रोड के बगल में हमारा काफी सारा नीबू और फूलों का पेड़ था | लड़कियों का झुण्ड फूलों को देखते ही उस पर हमला कर दिया करती थी | हममें मालिक होने का अहम् कूट कूट कर भरा होता तो हम उन फूलों की रक्षा में तैनात हो जाते थे | लेकिन थे तो बच्चे ही न ! ज्यों ज्यों वो बड़ी लड़कियों का झुण्ड नजदीक आता जाता त्यों त्यों हमारा आत्मविस्वास डगमगा जाता था | और सच कहूँ आखों के सामने उन लड़कियों का झुण्ड हमारे पुरे फूलों के बगान को लुट लिया करती | ये सावन के महीनो अनवरत चलता रहता, दिन रात हम उस बगान को बचाने का स्ट्रेटेजी बनाया करते लेकिन अफ़सोस हम बच्चों की क्या विसात......

 

अब तो बड़े हो गये | अब वो बात नहीं रही, हाँ जब भी मधुसरवानी होता है तो मुजफ्फरपुर के जजुआर गाँव का बिजली आन्दोलन याद आ जाता है | यही बाढ़ का मौसम, यही रोज की बरसात से भींगते हुए हम गाँव के गलियों, खेतों खलिहानों में लोगों को जगाने का काम करते थे | थकान से चूर हो जब दो पल के लिए किसी मंदिर पर बैठा करते तो मधुर आवाज में गीत गाती हुई, हाथों में फूलों से भरी डाला ली हुए लड़कियों का झुण्ड देख एक पल के लिए मन रोमांचित हो जाया करता था | लड़कियों के झुण्ड को देख डरने का खौफ अब भी मन में था, लेकिन इन नवयुवतियों को देख अब डर की बात नहीं रही | मन प्रफुलित हो जाता था | लेकिन समय की मांग के देखते हुए हम तुरंत मंदिर के किसी अनजाने कोने में विलीन हो कर फिर से अपने मीटिंग में व्यस्त हो जाया करते | अब बगान को बचाने का डर नहीं मिथिला को बचाने का का स्ट्रेटेजी जो दिन रात बनाया करते हैं |

 

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