आप विचलित नहीं होते मजदूरों की लम्बी लाइनें वीरान सड़कों पर देखकर | कहाँ जायेंगे, क्या खायेंगे, कहाँ सोयेंगे और कब घर पहुचेंगे ये प्रशन एक साथ पिछले तीन दिनों से दिमाग को डिस्टर्ब कर रखा है | हिन्दुस्तान जैसे प्रजातान्त्रिक देश में ऐसा यात्रा जिसका कोई अंत नहीं दिखता पिछले दशकों के विकास का पोल-पट्टी खोलने के लिये काफी है | और संवेदनशीलता सरकार की |

खैर बात बिहार के जनप्रतिनिधीयों की करते हैं | राज्य के मुखिया नितीश कुमार जी हैं | इनको आज कल क्या हो गया ये इनके इर्दगिर्द के लोग ही बता सकते लेकिन जहाँ तक मेरी समझ है सत्ता ने मोह ने इनके आखों के आगे घनी पट्टी बांध दी है | पिछले तीन दिनों से लगातार पूरी मीडिया में मजदूरों के व्यथा छाई हुई है, दिल्ली, पंजाब, मुंबई से पैदल ही हजारों किलोमीटर दूर अपने गाँव की यात्रा पर निकल चले मजदुरों के प्रति बिहार सरकार का रवैया समझ से पड़े है | कभी कभी लगता है की कहीं इस सरकार ने ये तो नहीं मान लिया कि ये पराये लोग हैं, लेकिन हमारे देश में पराये को भी दो रोटी खिलाने की परंपरा रही है | फिर अपने लोगों के प्रति ऐसा वर्ताव क्यों ?

 

मुख्यमंत्री जी सत्ता आपको राज करने के लिये नहीं मिला है | सत्ता का मतलब सेवा होता है और एक सेवक कभी अपने लोगों के प्रति ऐसा गैरभाव नहीं रखता | हजारों किलोमीटर की यात्रा पर निकले मजदूरों को देख आपको नींद कैसे आता होगा ये सोच कर मेरी नींद हराम हो गया है | और आप तो जानते ही हैं मजदुर जिस जीवटता से अपने अनंत यात्रा पर निकल पड़े हैं कहीं ये आपके बिहार के गद्दी की अंतिम यात्रा न बन जाये | आने वाले भविष्य में हमारा सवाल होगा कि जब लाखों बिहार के मजदुर दर-दर की ठोकरें खा रहें थे तब आप कहाँ थे नितीश जी ? हम मजदुर हैं, गरीब हैं लेकिन हमारा भी स्वाभिमान है | हमारे स्वाभिमान का इन्तिहान लेना बंद करें |

 

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