मैं एक आम आदमी हुँ । मैंने देश दुनिया देखा है, घुमा और समझा है । मुझे अपने शहर से प्यार है | एक आम इन्सान को तरह मैं भी अपने शहर को साफ, सुन्दर, सुव्यवस्थित देखना चाहता हूँ, लेकिन दुर्भाग्य से मेरा शहर जो कभी राजधानी दरभंगा कहलाता था आज अपने तारणहार की बाट जोह रहा हैं | अर्थव्यवस्था का आलम ये है कि दरभंगा शहर एक छोटे से कस्बे की तरह रेंग-रेंग कर चल रहा है |

 

पंद्रह सालों के सुशाशन का ढोल को पिटकर हमारे विधायक साहेब ने शहर के पूरे अथर्व्यवस्था को जोंक के भातीं जकड रखा है | विकास के किसी नये सोच की झलक तो दूर शहर के पुराने बैभव की खुली लुट मचा रखी है | अंधाधुन पोखर के भरने का खेल हो, राज परिसर के जमीन पर अवैध कब्जा हो, मन्दिर का ट्रस्ट हो या यूनिवर्सिटी का सिंडिकेट हर जगह अपने निजी स्वार्थ पूर्ति हेतु विकास के बदले विनाश का अन्धा खेल साल दर साल जारी है | शहर की सुंदरता विलुप्त हो गया ये हर चाय पान की दुकान पर चर्चा होता रहता है लेकिन पंद्रह साल के सत्ता के नशा में हमारे जनप्रतिनिधी सुनना बंद कर चुके हैं |

 

हॉस्पिटल अंग्रेजों के समय का, 70 के दशक का यूनिवर्सिटी, पुरे शहर के भूतल में शहर के पानी निकलाने हेतु नाला, लम्बी चौरी दो मुख्य सड़क, राज कैंपस की भव्यता को समेटे, हरे भरे बागों वाला राजधानी दरभंगा को देख कर आखों का आंशु सुख जाता है | गर्मी में पिने के पानी की भीषण समस्या से तपरती जनता, बरसात में घर में घुसते नाला का पानी इस शहर की वर्तमान हकीकत बन गयी है | दरभंगा टावर की रौनक विलुप्त हो गयी है और शहर में रेगंती ट्रैफिक स्पस्ट सन्देश दे रही है कि इस शहर को एक तारणहार की सख्त जरुरत है |

 

वर्तमान लीडर में विकाशवादी दुर्दार्सिता का अभाव, सत्ता की नशा में अपने चौकरी के बीच मदमस्त चिरनिंद्रा में सोये इन सब से अब कुछ नई सोच की कल्पना भी करना व्यर्थ है | कभी मिथिला की आन-बान-शान राजधानी दरभंगा आज मरते हुए शहर की श्रेणी में घुट-घुट कर अंतिम सासें गिन रहा है | जरुरत आज इस शहर के बैभव को लौटाने का है | दरभंगा शहर के राजधानी दरभंगा के रुतबा को फिर से बहाल करना है | और ये निर्णय दरभंगा की जनता को लेना है |

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