उन्होंने कहाँ ... ख़ूबसूरती पलकें झुँकाने में हैं
उनकी बात हम टाल न सकें
दींदे झुकाए.. अपनी ख़ूबसूरती को कमज़ोरी बनाकर हम चल दिए

उन्होंने कहाँ ... दहलीज ना लांगों
उनकी बात हम टाल न सकें
अपने सपनों को त्याग, हम दीवारों में बंद हो गए

उन्होंने कहाँ ... कलम छोड़ो
उनकी बात हम टाल न सकें
अपने हक़ से मुंह मोड़, दोहरी जिंदगी जीने लगें

उन्होंने कहाँ ... बड़े हो जाओ
उनकी बात हम टाल न सकें
दिल को मजबूत कर, हम अपनी मासूमियत से रूठ गए

उन्होंने कहाँ ... मुस्कुराना सीखों
उनकी बात हम टाल न सकें
दिल मजबूत.. निगाह कट्टर.. हम उनके कफ़न को ताकते रहें...

और मुस्कुराने लगें..

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