वो हर शाम, हर रोज़ आया,
उसका आना जाना अफसाना हो गया.
रोज़ रोज़ थक के सो जाना,
मेरा इंतज़ार पुराना हो गया.
मायूसियों से घिरे पल काट काट के,
मेरा दिल भी द्रौपदी हो गया.

ना वक़्त आया, ना वक़्त बदला,
ना वो कभी रूप बदल के आया.
अंतहीन गहराइयों मैं भी न कभी पड़ा उसका साया,
कशमकश से उलझती साँसों से,
मेरा मन धुआं हो गया.
मायूसियों से घिरे पल काट काट के,
मेरा दिल भी द्रौपदी हो गया........

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