बादल के उस मूल को देखा
जो कण कण शीतल जल है |
उड़ता बनता गिरता इस पृथ्वी पे पल पल है
आ जा तू मैं मिलके थोड़ा उपर चलते हैं |
चलके वहाँ तू मैं- मैं ही हो जाएँगे
छलक छलक के बरस बरस के-
फिर से सावन लाएँगे ||

http://goo.gl/OFpNak

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