कौन था वो? कोई भी तो नहीं,
फिर क्यों सोचती हूँ उसके बारे में,
क्यों डूबी रहती हूँ उसके खयालों में?
मैैं ख़ुश हूँ.. बहुत ख़ुश.. फिर क्यों हर वक्त वो दिमाग में आता है?
क्यों दिल में एक कसक सी है?
आज फिर मुझे कुछ इस तरह उसकी याद आगयी..
हाँ मेरा भी एक दोस्त था..

शायद वो मेरा कुछ था, या सबकुछ...
पसंद था वो मुझे, एक दोस्त की तरह,
एक एहसास, एक उम्मीद की तरह, मेरा मन पढ़ने वाला,
समझता था वो मुझे..
बातें करते थकती नहीं थी मैं, मेरे बारे में सब मालूमात थी उसे,
कोई मुझे डांट दे,बुरा-भला कह दे,
उसे बता कर अच्छा महसूस होता था,
आज फिर मुझे कुछ इस तरह उसकी याद आगयी..
हाँ मेरा भी एक दोस्त था..

वो तो मेरे बारे में जान गया,सब कुछ..
पर क्या मैं जानती थी उसे?
थोड़ा बहुत, या शायद बिलकुल भी नहीं....
जानती भी कैसे? क्योंकि सिर्फ़ वो मेरा दोस्त था,मैं उसकी नहीं|
स़िर्फ इंसानियत के नाते ही वो मुझसे बाते किया करता था, और इसके लिए मैं उसकी आभारी रहुंगी |
आज फिर मुझे कुछ इस तरह उसकी याद आगयी..
हाँ मेरा भी एक दोस्त था..

मुझे मोहब्बत है,उससे जुड़ने वाली हर कड़ी से…
हर पल से, हर रिश्ते और नातों से..
मैं उसके लिए चाहे जो भी रही हूं,
वो मेरे लिए अनमोल था..
बहुत ही ख़ास..
उसे मैं कभी भुला न पाऊंगी ..
आज फिर मुझे कुछ इस तरह उसकी याद आगयी..
हाँ मेरा भी एक दोस्त था..
और हमेशा रहेगा | :)

- दीर्घा पाण्डेय
:)

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