मैं कौन हूँ, मैं क्या हूँ,
अपने अस्तित्व से परेशान हूँ.
मैं खुश हूँ, मैं उदास हूँ,
अपने जज्बातों से परेशान हूँ.

तू मुझे बार बार सिखाती है ज़िन्दगी,
तू मुझे बार बार रुलाती है ज़िन्दगी,
मैं अपने हालातों के कश्मकश से परेशान हूँ.

मुकम्मल नहीं लगता मुझे अब कभी ये हो पायेगा,
मैंने जो खो दिया वो कभी लौट आएगा,
मैं इस पाने खोने की जद्दोजहद से परेशान हूँ.

सजदे किये मैंने लाखों बार,
दुआएँ की एक मरासिम को बचाने के लिए,
मैं इस मरासिम के बार बार बचने से परेशान हूँ.

मेरे हालात मेरे रकीब वहीँ हैं,
दिल को चुभने वाले अलफ़ाज़ वहीँ हैं,
नहीं बदला कुछ भी, बिखर गया है सब कुछ फिर भी,
मैं इस बिखरे हुए ख़त के पुरजो से परेशान हूँ........

Tags: True Story

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