आयेँगे वो सोच कर हम घर सजाते रह गये ।
और कभी दे कर सदा उनको बुलाते रह गये ।।

चार दिन मेँ ज़िँदगी की शाम लो आ भी गयी ।
बोझ हम ख़्वाबोँ का अपने सर उठाते रह गये ।।

हमसे पीछे थे कभी जो हमसे आगे हो गये ।
हम मगर तक़दीर के किस्से सुनाते रह गये ।।

हर ख़ुशी दे दे के दस्तक घर से वापस हो गयी ।
और धुँऐँ मेँ ग़मोँ को हम उडाते रह गये ।।

तेरे दर पर आ के भी दीदार हम ना कर सके ।
बस तेरी दहलीज पर सर को झुकाते रह गये ।।

-शिव

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