एक बात तो तय है की किसी को नही पता की वो कब तक जीवन का सुख भोग सकता है या भोग रहा है. एक दिन अचानक सब ख़तम हो जाएगा कुछ नही रहेगा .. ना ही यह सब बातें जिनके लिए हम इतने दुख़ी रहते हैं ना ही बातें जिन्हे सोच सोच के इतरते हैं.
जब वक़्त का कुछ नही पता तो बेहतर है की पहले से ही सब बंदोबस्त किया जायें.
मुझे हर सुबह के साथ यह प्रतीत होता है की आज कही मेरा आख़िरी दिन ना हो..कही में किसी बस के नीचे आके या कभी रक्त दवाब की वजह से यह सब छोड़ के कही दूरकिसी और दुनियाँ में किसी और तल में ना चली जाउ
ऐसा मुझे एक दिन नही रोज़ लगता है , आज मुझे इस बात का एहसास बहुत करीब से हुआ तो मैने सोचा क्यो ना इस सच का सामना एक अलग सोच के साथ किया जायें ना जाने मुझे कब क्या हो जाए इसलिए यह मेरे कुछ शब्द जो मेरे जाने का बाद मेरी याद को शायद कुछ लोगो के लिए ताज़ा रखेंगी और मेरे होने का प्रमाण देंगे
मुझे अक्सर लगता है की कुछ लोग तो ज़रूर होंगे जो मुझे मेरे जाने के बाद भी मुझे याद रखेंगे एक नन्ही और मुस्कुराती हुए शाम की तरह.
यह सब लिखना ज़रूरी लग रहा है क्योकि मुझे हर लम्हा एक अजीब सा भय घेरा रहता है ..
यह भय जीवन से डोर . मृत्यु के करीब होने का है यह भय उस बात का है जो बात स्थिर नही किसी के भी जीवन में . मेरा भय यूह लाज़मी नही है , पर हर डर हमेशा आपको या तो बहुत हिम्मत दे देता है या बहुत शींड बता देता है .

जीवन को हमेशा एक स्कूल के बस्ते की तरह देखा है मैने, जिस विषय में रूचि नही उसे बस अंक के खातिर पड़ लो. मुझे हमेशा उमीद थी की में कुछ अलग करूँगी लेकिन जीवन के झमेलो में , कुछ बूज़रगू के ख्वाबो को रिझाने के खातिर एक अधूरी सी जिंदगी जी है मैने..
दूसरो को दिखाने के लिए यह डिग्री ली ताकि समाज में बैठ सकूँ लेकिन खुद की नज़रो के आगे बैठने में हमेशा एक झीजक रही मुझे इसलिए शायद कभी अकेले रहने का नही सोच पाई .. क्योकि अगर मेरा अंतरमॅन मुझसे सवाल करेगा की तूने मेरे लिए क्या किया तो उसे क्या जवाब दूँगी कभी जब अकेले बैठे रो रही होंगी तो क्या मेरा साथ देने लिए में खुध खड़ी होंगी, क्योकि जो भी है आज मेरी वजह से ही है मेरे कारण ही है , मैने खुद के लिए क्या किया? … शायद कुछ नही..
लिखने का शौक था बहुत , बहुत उमदा और काबिल लिखना चाहती थी लेकिन फिर क्यो नही पूरा कर पाई अपना सपना और जब यह पूरा होने को ही था तो श्रीस्टी रचीयता को मेरी ज़रूरत पद गयी. अपने लिए कुछ करना चाहती थी, दोस्तों के लिए करना चाहती थी .. आख़िर वो ही तो थे जिन्होने हर कदम में मुझे मजबूत किया मेरे अश्को के साथ खुद भी भीगे ..
लेकिन अब तो वक़्त नही है अब हिम्मत भी ख़तम हो गयी है अब उठु तो शायद लाचार और अपाहिज़ उठु इसीलिए गहरी नींद लेना सही रहेगा.. महसूस सब हो रहा है बस अब किसी से कुछ बोलने की हिम्मत नही बची.. इस उम्मीद के साथ आँखें मूंद रही हू की अगला जीवन कुछ नये ख्वाब लाएगा कुछ पन्ने इसमे कामयाबी के भी जुड़े होंगे इस वक़्त तो अब बस नींद बहुत आ रही है और अब यह कहा खुलेगी किसे पता, अपना बचपन एक चलचित्रा की भाँति प्रत्यक्ष दिख रहा है हस्ता खिलखिलता , उमंग के साथ झूलता सपने सजाता और यह सब देख के बड़ा सुकून मिल रहा है और अब में सो रही हू एक गहरी नींद में क्या पता फिर कही किसी पन्ने में आप सब से मुलाकात हो.

Tags: Psychology

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