मैं एयरपोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया से पहले डिपार्टमेंट ऑफ़ एटॉमिक एनर्जी के एक स्वायत्तशासी (Autonomous) संस्थान, इंस्टिट्यूट फॉर प्लाज्मा रिसर्च में काम करता था. ये संस्थान नाभकीय संलयन (Atomic Fusion) के क्षेत्र में अनुसन्धान करता है और गुजरात की राजधानी गांधीनगर और अहमदाबाद के बीच हाईवे पर है. यहाँ मैंने 92 से 95 तक काम किया और सितम्बर 95 में एयरपोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया को ज्वाइन कर लिया. इंस्टिट्यूट फॉर प्लाज्मा रिसर्च को शोर्ट में आई पी आर कहते हैं. आईपीआर में बड़ा लोकतंत्र था. सभी लोग, जूनियर हो या सीनियर, एक दूसरे को नाम से बुलाते थे. मिस्टर शर्मा, प्रोफेसर जॉन, मिस्टर सक्सेना आदि आदि कोई सर या साहब नहीं. यहाँ के प्रमुख अर्थात निदेशक भी कैंटीन में खाना लेने के लिए लाइन में खड़े रहते थे और खाना खाने के बाद अपनी झूठी प्लेट खुद उठा कर वाशबेसिन में रख कर आते थे. क्योंकि आईपीआर जंगल में था तो एक बार सुबह आने के बाद पूरे दिन और कहीं जाने का कोई विकल्प नहीं था, जब तक शाम को स्टाफ बस आपको वापस छोड़ने न जाये. शायद इसी कारण से सेकंड हाफ में यहाँ एक डॉक्टर बैठते थे जिनकी सेवाएँ स्टाफ के लिए निशुल्क होती थी. सेवाएँ मुफ्त होने की वजह से ज्यादातर लोगो की शिकायते भी बेमतलब होती थी. जैसे पेट साफ़ ना होना, नींद ठीक से ना आना, भूख कम लगना आदि आदि. एक बार मैंने भी इन चिकित्सक महोदय की सेवाए ली. मेरी शिकायत भी और लोगो जैसी ही अगंभीर थी. मैंने बताया कि मेरा पेट सुबह ठीक से साफ नहीं होता उन्होंने ज्यादा पानी पीने, व्यायाम करने की सलाह दी और सॉफ्टवेक नाम का एक पाउडर रात को सोने से पहले एक चम्मच लेने को कहा. उनके लिखे प्रिस्क्रिप्शन के आधार पर मैंने वो पाउडर मेडिकल स्टोर से खरीदा और नियमानुसार एक फॉर्म भर कर उसके मूल्य का दावा बिल सहित कार्यालय में पेश कर दिया. कुछ दिनों में पैसे मिल गए और उसके कुछ दिनों में वो पाउडर भी समाप्त हो गया. मैंने फिर से चिकित्सक महोदय से संपर्क किया और बताया कि समस्या ज्यूं की त्यूं है उन्होंने मौखिक रूप से उसी पाउडर को जारी रखने की सलाह दी. मैंने फिर से एक शीशी उसी पाउडर की खरीदी और फिर से क्लेम वाला फॉर्म भर दिया. दो दिन बाद एडमिनिस्ट्रेशन के क्लर्क ने मुझे बुलाया और कहा
“शर्मा जी आपका बिल तो ठीक है लेकिन इसके साथ डॉक्टर का प्रिस्क्रिप्शन नहीं है”
“डॉक्टर साहब ने तो मौखिक रूप से मुझे उसी ट्रीटमेंट को जारी रखने को कहा था” मैंने जवाब दिया
“नहीं ऐसे बिल पास नहीं होगा. अगर आपको अपने पैसे चाहिए तो आपको डॉक्टर का प्रिस्क्रिप्शन तो लगाना ही पडेगा”
“ठीक है” कहकर मैंने बिल और प्रतिपूर्ति फॉर्म दोनों वापस ले लिए.
अगले दिन मैंने डॉक्टर साहब को अपने समस्या बतायी तो उन्होंने अपने लैटर हेड पर मुझे फिर से वो ही प्रिस्क्रिप्शन लिखकर दे दिया. मैंने उसी दिन उसे बिल के साथ लगा कर फिर से प्रशासनिक अनुभाग में जमा कर दिया. मुझे अगले दिन फिर उसी क्लर्क, आर टी पंड्या, ने बुलाया और बताया
“बिल की तारीख पहले की है और डॉक्टर का प्रिस्क्रिप्शन उसके बाद का, ये नियमानुसार नहीं है. इसके हिसाब से तो आप डॉक्टर के कहने से पहले ही दवाई खरीद चुके थे.”
“तो पंड्या भाई अब मैं क्या करूं?”
“मेडिकल स्टोर से बिल की डेट चेंज करा लो”
“वो तो नहीं करेगा. वो क्यों करेगा भला?”
“ठीक है कोई बात नहीं खुद ही पेन से चेंज कर दो”
मैंने उनकी सलाह पर बिल की डेट बदल दी. फिर दो तीन दिन बाद मुझे एडमिनिस्ट्रेटिव ऑफिसर मिस्टर वेणुगोपाल ने बुलाया
“मिस्टर शर्मा आपके बिल की डेट में करेक्शन हैं ये दवाई आपने कब खरीदी थी?”
“सर, ये करेक्शन दुकान वाले ने ही किया था. उससे गलती हो गयी थी. जो करेक्टेड डेट है वो ही सही है”
“ओके बिल के ऊपर मेडिकल स्टोर का फोन नंबर है जरा उसे फोन लगाईये”
मैंने फोन लगाया और उनकी और बढ़ाया
“नहीं नहीं आप ही बात कीजिये और उससे बिल नंबर बता कर पूछिए कि ये बिल नंबर किस डेट का है”
मैंने पूछा तो जाहिर सी बात थी कि उसने सही डेट बताई मैंने फिर भी मासूम बनते हुए बड़े आश्चर्य से उससे कहा
“जरा ठीक से देखिये ऐसा कैसे हो सकता है?” उसने फिर से सही डेट रिपीट कर दी.
अब मेरे पास कहने के लिए कुछ नहीं बचा था और मेरी चोरी पकड़ी जा चुकी थी. बात स्पष्ट थी कि मिस्टर वेणुगोपाल मुझे बुलाने से पहले ही मेडिकल स्टोर को फोन कर चुके थे. मिस्टर वेणुगोपाल ने मुझे ना सिर्फ खूब डांटा बल्कि धमकाया भी कि वो मैंने विरुद्ध क्या क्या एक्शन ले सकते हैं. 10-15 रूपये के बिल के लिए मुझे बहुत नीचा देखना पड़ा, सॉरी बोलना पड़ा और अपमान सहना पड़ा. वो दिन है और आज का दिन है मैं कभी भी कोई फाल्स क्लेम नहीं करता चाहे कितना ही नुकसान क्यों ना हो जाए. असम ट्रान्सफर पर भी कई लोगो ने सलाह दी थी कि कार ट्रांसपोर्टेशन का बिल किसी भी ट्रांसपोर्ट कंपनी से बनवा कर क्लेम कर दो, कम से कम पचास हजार रूपये मिल जायेंगे. मैंने नहीं किया. कार सूरत में जंग खा रही है और मैं यहाँ ग्यारह नंबर की बस में धक्के.
दूध का जला छाछ भी फूंक फूंक कर पीता है
(एक सम्भावना ये भी है कि पंड्या जी ने मुझे बिल की डेट चेंज करने की सलाह दी और वेणुगोपाल जी को इसकी सूचना. भगवान जाने....)

Tags: Short Story

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