शीतल मेरी, मेरी शीतल,
कितनी निर्मल, कितनी चंचल,
तुम ऐसी जैसे गंगा-जल,
शीतल मेरी, मेरी शीतल,
कहती हो तुम जो कुछ बाते,
हम कुछ भी तो समझ ना पाते,
रोज ही मन को ये समझाते,
झूठे हैं सब रिश्ते नाते,
ख़्वाब तुम्हारे मुझको आते,
आकर मुझको बहुत सताते,
तुम्ही याद हो आते जाते,
तुम्ही याद हो पीते खाते,
तुम्ही याद हो मुझको हर पल,
शीतल मेरी, मेरी शीतल,
तेरी जुल्फे बादल काले,
फंस ही चुके हैं फ़सने वाले,
लगता है तेरा ये मुखडा,
हो जैसे एक चाँद का टुकड़ा,
तुम जाने क्या क्या कहती हो,
मुझको तो ऐसी लगती हो,
नदिया बहती जैसे कलकल,
शीतल मेरी, मेरी शीतल,
अब कहती हो प्यार नहीं है,
मुझको तो एतबार नहीं है,
फिर बोलो ये क्या नाता है,
समझ नहीं मुझको आता है,
तुम मुझको चाहो ना चाहो,
गीत मेरे गाओ ना गाओ,
मैंने बस तुमको चाहा है,
पाकर भी तो ना पाया है,
क्यूँ डरती है संग चली चल,
शीतल मेरी, मेरी शीतल,
तुम इस दिल की धडकन में हो,
तुम इस मन के आँगन में हो,
आँखों में बस ख़्वाब तुम्हारे,
फिर भी हम ना कुछ भी तुम्हारे,
तेरा दोस्त तो कोई और है,
मेरी बात भी काबिले गौर है,
उन लोगो से क्या पाओगी,
बिखर के एक दिन रह जाओगी,
उस महफ़िल से बाहर आओ,
जीना सीखो फिर मुसकाओ,
जीवन में फिर आये हलचल,
शीतल मेरी, मेरी शीतल,
तुम सीधी हो तुम भोली हो,
मेरे मन की रंगोली हो,
इस दुनिया को तुम क्या जानो,
बात मेरी मानो ना मानो,
मेरी बातों में अनुभव है,
मैं जो कहता हूँ संभव है,
लडके भी कभी मित्र बने हैं,
पानी पर कभी चित्र बने हैं,
वो प्रतीक है तथ्य नहीं है,
वो मिथ्या है सत्य नहीं है,
नही अतीत से कुछ भी सीखा,
जीवन रह जाएगा रीता,
मन को केवल भटकाओगी,
नहीं कही भी पहुच पाओगी,
मानो और उस से मुँह मोडो,
बस मुझ से ही नाता जोड़ो,
मेरी पीड़ा को तुम तुम जानो,
बहुत हुआ अब मेरी मानों,
मन के आंसू किसे दिखाऊ,
पर-पुरुष कैसे सह पाऊ,
मैं जलता हूँ निशदिन प्रतिपल,
शीतल मेरी, मेरी शीतल.

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