जैसे कोई कहानी शुरू होने से पहले ही 
ख़त्म हो गयी हो
जैसे कोई स्वप्न कोई ख्वाहिशें 
सिसकती रह गयी हो 
पहलुओं में
जैसे उन्मुक्त गगन से 
उडा ले गया हो उस बादल को 
कोई आततायी हवा
ठीक उसी तरह 
मेरी जिंदगी गिरी है
उस आकाश से
कटी पतंग की तरह
जैसे तलाश रही हो अपनी 
रहनुमा कोई
© नीतीश कर्ण 
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