विज्ञान ने बहुत सी खोज की है और हमें आधुनिक बनाया है, लेकिन इस दौड़ में हमने अपने आंतरिक मन की खोज नहीं की। हम मानवता भूलते जा रहे हैं। इससे मानवीय मूल्यों और नैतिकता का पतन हो रहा है। नैतिकता वह है जो धर्म वेली में पुष्पित होता है। जिसे धर्म से पृथक नहीं क्या जा सकता लेकिन अगर ऐसा हुआ तो व्यक्ति या समाज कदापि सदाचारी नहीं बन सकता । नैतिकता को धर्म का रस मिलना ही चाहिए।मनुष्य को चाहिए कि वे धर्म तत्व को समझते हुए ही नैतिकता को अपने आचरण में लायें ।बाह्य आचरण को देखकर नैतिकता और अनैतिकता को परिभाषित नहीं किया जा सकता।जिसके प्राण धर्म व परमात्मा को समर्पित हैं उसका कोई भी आचरण अनैतिक हो ही नहीं सकता, क्योंकि धार्मिक होते ही व्यक्ति स्वतः नैतिक हो जाता है। जिसका धर्म और परमात्मा के साथ संबंध नहीं है, उसका आचरण बाह्य दृष्टि से कितना ही शुभ और सदाचारी क्यों न हो, वह नैतिक नहीं हो सकता।
ईमानदारी, सत्यता, विवेक, करुना, प्रलोभनों से दूर रहना, पवित्रता ये नैतिक मूल्यों के आदर्श तत्व हैं, इन आदर्श तत्वों (सिद्धांतों) से जीवन में आध्यात्मिकता का जन्म होता है | आध्यात्मिकता का अर्थ है अपनी अन्तरात्मा की आवाज के अनुसार निष्ठापूर्वक कर्तव्य का पालन करना | मनुष्य का व्यवहार धर्म से ओत-प्रोत होना चाहिए। उसके लिए व्यक्ति जीवन में नैतिक मूल्यों की प्रतिष्ठा करें। व्यवहार में नैतिक मूल्य होने पर व्यवहार धर्म से प्रभावित होता है। धर्म सनातन, असीम, अपरिमित, सत्य, आनंद और प्रकाश का स्रोत है। जो आज आरोपित नैतिकता के आवरण में ढंक गया है। नैतिक मूल्यों के अभाव के कारण व्यक्ति के चरित्र में गिरावट आती जा रही है | आज अपराधों का ग्राफ हर वर्ष बढता जा रहा है| चोरी, डकैती, बलात्कार, हत्याएं इसलिए हो रही हैं कि व्यक्ति स्वयं के जीवन में उच्च आदर्शों एवं नैतिक मूल्यों को जीवन में स्थान ही नहीं दे पा रहा है| गांधीजी ने जीवन भर नैतिक मूल्यों को अपने जीवन में स्थान दिया, वे हर कार्य अपनी अंतरात्मा की आवाज (नैतिक मूल्यों) के अनुसार करते थे |
नैतिक मूल्यों के बिना शिक्षा अधूरी है। नीतिशास्त्र की जानकारी न केवल विशेषज्ञों को होनी चाहिए, बल्कि विद्यार्थियों को भी इसका ज्ञान होना चाहिए। वास्तविक एवं नैतिक मूल्यों पर आधारित शिक्षा हमें बच्चों को देना चाहिए, क्योंकि वर्तमान शिक्षा व्यवहारिक शिक्षा नही है |इससे मानवीय मूल्यों का ह्राश होता जा रहा है| आज समाज में नैतिकता का पतन अधोतल पर है। समाचार पत्रों व न्यूज चैनलों पर दिखाए जाने वाले समाचार इसके साक्ष्य हैं। विद्यार्थी जीवन में हिंसक प्रवृत्तियों का प्रकाश में आना चिंता का विषय है। अतः शिक्षा में नैतिक मूल्यों का समावेश बेहद जरूरी है। नैतिक मूल्यों के माध्यम से ही विद्यार्थियों का बेहतर चरित्र निर्माण किया जा सकता है। आज नैतिक मूल्यों के अभाव में परिवार टूट रहे हैं, अपने स्वयं के बच्चे, पत्नी के अलावा अन्य सदस्यों पर ध्यान न दिया जा रहा है| पहले नैतिक मूल्यों के कारण संयुक्त परिवार में सभी परिवार के सदस्य इकट्ठे रहते थे | आज फिर आवश्यकता है कि हम अपने अंतर्मन में झांके और अध्यात्म की ओर मुड़े ताकि जीवन में नैतिकता आ सकें। परिवार बच्चों की प्रथम पाठशाला है अतः हर माता-पिता का प्रथम कर्तव्य है कि वे स्वयं का आचरण शुद्ध सरल-पवित्र एवं मर्यादापूर्ण रखें |अपने बच्चों को अपने नगर की भोगोलिक स्थिति, संस्कृति, धरोहरों से भी समय-समय पर अवगत कराते रहें ताकि उनमें इन सभी के प्रति अपनत्व की भावना जाग्रत हो सके| हर कार्य अपनी अंतरात्मा एवं उच्च आदर्शों को ध्यान में रखकर करें |आदमी के ज्ञान का सार है कि वह हिंसा नहीं करें।चारित्र का एक महत्वपूर्ण व केन्द्रीय बिंदू अहिंसा है। जिस व्यक्ति में अहिंसा व्याप्त हो जाती है,उसमें नैतिक मूल्य आ जाते हैं और उसका चारित्रिक विकास हो जाता है। एक आदर्श परिवार या देश के संचालन हेतु परिवार के सभी सदस्यों, या देश के सभी नागरिकों में शिष्टाचार, सदाचार, त्याग, मर्यादा, अनुशासन, परिश्रम की आवश्यकता है | यदि जीवन में शिष्टाचार, सदाचार, अनुशासन, मर्यादा है तभी परिवार और देश में शांति रहेगी | यदि परिवार या राष्ट्र में स्वार्थ लोलुपता, पद लोलुपता बनी रहेगी तो परिवार भी टूटेगा, राष्ट्र भी भ्रष्टाचार से प्रदूषित होता रहेगा| इसलिए अहंभाव त्यागकर, स्वार्थ त्यागकर, प्रलोभनों से दूर रहकर अपने व्यक्तिगत जीवन में विनम्रता, त्याग, परोपकार को जीवन में स्थान देना होगा तभी हम एक आदर्श परिवार व राष्ट्र का सृजन कर सकते हैं | एक आदर्श और खुशहाल राष्ट्र का स्वप्न साकार कर सकते हैं |
कन्फ्यूशियस के अनुसार - “यदि आपका चरित्र अच्छा है तो आपके परिवार में शांति रहेगी, यदि आपके परिवार में शांति रहेगी तो समाज में शांति रहेगी, यदि समाज में शांति रहेगी तो राष्ट्र में शांति रहेगी" |

प्रस्तुति :
- चन्द्रशेखर प्रसाद