ऊपर वाले बर्थ पर लेटा हुआ था | चाय बेचने वाला आया और मैंने एक चाय की आर्डर कर दी | पिछले एक साल से रेलवे में सफ़र करते हुए 10 रूपया का नोट निकाल कर देने की आदत हो गयी थी तो दे दिया | फिर यूँ ही वेंडर से पुछ दिया कि रेलवे में चाय का रेट सरकार ने 7 रूपया तय कर रखा है | तुरंत वो जबाब देता है कि सरकार ने तो बहुत कुछ तय कर रखा है | और उसके शब्दों से लगा कि किसी ने शरीर से दिल को निचोर कर निकाल लिया हो और मन व्यथित हो गया |

दिमाग में आया कि क्या इस देश में नियम कानुन नाम की चीज नहीं है | जिधर देखो वो ही अपनी चलाने पर तुला हुआ है | जिसे जो मन है वो करता है | कभी पुलिस अभिरक्षा में वकील मुवकिल की पिटाई कर देता है तो कभी जाति के नाम पर पुरे राज्य में आग लगा दी जाती है | लोग नियम कानुन को ताक पर रख काम करते हैं और डर नाम की कोइ चीज नहीं है |

ईमानदारी से कहूँ तो मैंने प्रतिकार किया | चाय वाला 10 रूपया से कम लेने को राजी नही हुआ और जब मैंने चाय वापस करने की बात की तो ताव में आ कर उसने चाय खिड़की के बाहर फेक दिया और मेरा पैसा वापस कर दिया | मैंने जा कर कोम्प्लेन रजिस्टर में नोट लिखी और रेलवे को मेल किया वो अलग बात है, लेकिन चाय मुझे नहीं मिली, और 10 रूपया में खरीदने का प्रशन ही नहीं था | बगल वाले भाई साहेब आराम से 10 रूपया में चाय गटकते हुए मानो मुझे चिढाते हुए महसूस हुए |

अब सवाल उठता है कि लोग ऐसा क्यों करते हैं | और जबाब भी बहुत ही आसान है | हम पढ़े लिखे लोग इन सब चीजो को देख कर आखं मुंद लेते हैं और चुपचाप अपने फायदे की बात सोच कर बिना मतलब का टेंशन लेने से डरते हैं, इसीलिये हमें रोज रोज ये सब झेलना पड़ता है | तब लगता है कि कहीं न कहीं हमारी पढाई की व्यवस्था में ही खोट है | ये हमें " चलता है " के तौर पर ढाल देती है | हमें प्रतिकार करना, सोचना, प्रश्न करना नहीं सिखाती और हम जिस मिडिल क्लास से ताल्लुक रखते हैं वो आपको चुप रहने को मजबूर कर देती है |

व्यवस्था बदलने के लिए हमारा बोलना, सोचना, प्रशन उठाना बहुत जरुरी है | हम नुकसान और बिना मतलब का माथापच्ची से डर जब तक नहीं बोलेंगे हमारा शोषण होता रहेगा | हमें इस को बदलने के लिए आगे आने की जरुरत है | बोलने की जरुरत है तभी हमारा देश, हमारा समाज सुन्दर बनेगा |

Tags: Politics

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