जब भी इस छत पर आता हूँ तो आधा चाँद दिख जाता है | ठंडी हवा शरीर में एक हलचल मचाती है | चाँद की रौशनी मन को उमंग से भड़ देती है | हवा की हर झोंक मन में एक नया उल्लास लेकर आती है किन्तु इस तन्हाई में चाँद का दीदार होते ही तुम याद आ जाती हो |

अब तुम तो हो नहीं | कितना तुम से फोन पर बात करूँ | इस बड़े से उजड़े छत पर जब चाँद के रौशनी झिलमिलाती है तो दिल का दर्द छलक पड़ता है | लगता है काश तुम होती तो तुमसे बात करता | इस ठंडी हवाओं में तुम्हारे बालों को लहराते देखता | इस चांदनी को तुम्हारे चेहरे पर झिलमिलाते हुए देखता और एक किनारे में बैठ कर प्रेमभरी बातें करता | चाँद को तुम्हारे साथ निहारता और आकाश में झिलमिलाते तारों को गिनता और कुछ नहीं तो बादल को अपना आशियाना बना छत पर हम कबूतर के जोडू के तरह गुटरगु करते |

लेकिन चाँद तो रोज ढल जाती हैं और तारे भी टिमटिमाते बुझ जाते हैं और न जाने कितनी उपग्रह इधर से उधर निकल जाती हैं | लेकिन तुम हो की मोबाइल से निकल बाहर ही नहीं आ पाती और मैं तुम से मिलने को तरसते रहता हूँ | तुम्हारो होठों की फरफराहट चेहरे के बदलते हावभाव का दीदार नहीं हो पाता | तब लगता है कि तु कहीं चाँद तो नहीं बन गयी और तेरी चांदनी का दीदार करते करते मैं थका हारा सदियों से चला आ रहा उस बंधन में फसं कर तो नहीं रह गया |

Tags: Fiction

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