उधार माँगने वाले बड़े विचित्र प्रकार के प्राणी होते हैं. वैसे उधार मांगे वाले भी दो तरह के होते हैं. पहले वो जो जानबूझ कर आपको बेवकूफ बना कर एक साजिश के तहत आपसे उधार माँगते हैं. ये बड़े शातिर तरह के लोग होते हैं और इनके लिए ये एक व्यवसाय है, जिन्दगी जीने का तरीका है. दूसरे वो जो किसी भी कारण हालातो से मजबूर हो कर उधार माँगने पर विवश हो जाते हैं. दोनों तरह के लोगो को समझने के लिए मैं आपको दो किस्से सुनाऊंगा.
ये तो आपने सुना ही होगा कि आवश्यकता से अधिक विनम्रता दिखने वाला, झुक कर नमस्कार करने वाला, अकारण आपकी प्रशंसा करने वाला आदि आदि...झूठा, धूर्त और मक्कार होता है. बस यही पर हम गच्चा खा गए. रायपुर पोस्टिंग के दौरान हमारे एक मित्र थे. वो कथाकथित गायक थे, इसी कारण से उनसे परिचय हुया था. गौर वर्ण, हमेशा मुस्कुराता हुआ चेहरा, सादगी और विनम्रता की साक्षात प्रतिमूर्ति, बोले तो उनके मुंह से फूल झरते थे. दो तीन महीने की मित्रता के बाद ही उनका जन्मदिन आ गया. उन्होंने धूमधाम से एक होटल में अपना जन्मदिन मनाने का आयोजन किया. वो जनाब रफ़ी साहब के फैन थे उन्ही के गाने गाते थे और उनका कहना था कि उनका और रफ़ी साहब का जन्मदिन एक ही दिन आता है. सब कुछ ठीक चल रहा था कि उनका अचानक दोपहर में फोन आया कि
“एक बहुत बड़ी मुसीबत आन पडी है. समझ नहीं आ रहा कि आपसे कैसे कहूं, किस मुंह से कहूं.”
“जब तक आप बताएँगे नहीं मुझे समझ में कैसे आएगा?”
“मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मुझे आपके सामने ऐसे शर्मिंदा होना पड़ेगा.”
“भाई बताओ तो सही क्या हुआ.”
“शाम को पार्टी रखी है, सब लोगो को बुलाया है और सब चौपट होने जा रहा है.”
“अब पहेलियाँ बुझाना बंद करो और खुल कर बताओ.”
“आपको तो पता है कि हमारे बिज़नेस में वीकली पेमेंट पर धंधा चलता है. आज कहीं से पेमेंट आने वाला था और आगे किसी को देना था. आने वाला पेमेंट किसी कारण से दो दिन लेट हो गया है और जिसे देना था वो शाम को पार्टी में आ कर झगडा करने की धमकी दे रहा है.”
“कितने पैसे की जरूरत है?”
“एक लाख रूपये की बात है लेकिन आप बिलकुल भी चिंता ना करें आज सोमवार है, बस दो दिन की बात है गुरूवार को मेरा पेमेंट आ जाएगा. सिर्फ दो दिन के लिए एक लाख रूपये चाहिए. सिर्फ दो दिन.”
शायद मेरी अक्ल पर पत्थर पड़े थे. मैंने उन्हें दो-तीन महीने की दोस्ती में एक लाख नगद दे दिए. और उसके बाद वो ही हुआ जो अक्सर होता है; “प्यार गया, पैसा गया और गया व्यापार, दर्शन दुर्लभ हो गए, जब से दिया उधार”. ये पैसा वसूल करने में मुझे एक साल लगा वो भी “साम, दाम, दंड और भेद” प्रयोग करने के बाद. जब मैंने मित्र-मंडली के अन्य लोगो से उनसे पैसा वसूल करने में मेरी मदद करने की गुजारिश की तो पता चला कि अधिकांश: लोग उनसे पहले से पीड़ित थे और अपने-अपने पैसे के वापस आने का इंतज़ार कर रहे थे. कुल मिला कर पूरे एक साल में पांच-पांच, दस–दस हजार करके बड़ी मुश्किल से मेरा पैसा वसूल हुआ और वो भी उनके हलक में हाथ डालकर निकालना पडा.
अब दूसरे तरह के लोगो की बात करते हैं. मेरे एक बहुत पुराने मित्र हैं; 26 साल पुराने. वो प्राइवेट जॉब में हैं और मुझे पता है कि कभी भी उनकी नौकरी ठीकठाक नहीं चली. यहाँ से छोड़ वहाँ और वहाँ से छोड़ कही और. कभी कभी तो लम्बे समयों तक बेरोजगार भी रहे हैं. उन्होंने 2008 में मुझसे 10 हजार मांगे बताया कि अगर पैसे नहीं मिले तो जिन्दगी बर्बाद हो जायेगी यहाँ तक कि तलाक भी हो सकता है. 6 महीनो में पैसे वापस कर देने का वादा था. 6 महीने में पैसे तो नहीं मिले बल्कि डेढ़-दो साल बाद उन्होंने बताया कि पहले वाली से भी ज्यादा बड़ी समस्या आ गयी है. इस बार आवश्यकता 25 हजार की थी. मैंने पुराने संबंधो का लिहाज करके वो भी दे दिए. अब कुल 35 हजार का उधार हो गया है, और 8 साल का समय. कल रात उनका मेसेज आया है कि जिन्दगी में सब कुछ ख़त्म हो गया है. अब मैं फलो की रेहडी लगाना चाहता हूँ. 20 हजार रूपये की आवश्यकता है.
आईये अब इस मानसिकता को समझने की कोशिश करते हैं. जब एक सामान्य आदमी मुसीबत में आता है और आपसे उधार माँगता है तो उस वक्त वो हजार तरह की अपनी मजबूरियाँ बताता है और कसमे खा खा कर एक नियत समय सीमा में उधार वापस कर देने के वादे करता है. उस समय आप उसके लिए भगवान होते हैं. ज्यादातर मामलो में ये नाटक नहीं होता और वो आपको सचमुच में भगवान मानता है. उसके वादे सच्चे दिल से किये जाते हैं और आपका पैसा दबाने की उसकी कोई नीयत नहीं होती. लेकिन जैसे जैसे वक्त गुजरता है उसकी सोच बदलने लगती है.
“जब ये आदमी अपनी सारी जरूरते पूरी करने के बाद इतना पैसा तो मुझे दे सकता है तो इसके पास कुल कितना होगा?”
“जब पिछले 1 साल में मैंने इसका पैसा वापस नहीं किया और इसे कोई परेशानी नहीं हुई तो कुछ दिन और नहीं दूंगा तो क्या फर्क पडेगा?”
“दे दूंगा मैं कही भागा नहीं जा रहा हूँ. जब मेरी हालत थोडा ठीक हो जायेगी तब दूंगा?”
“एक आदमी के पास इतना ज्यादा है कि अपनी जरूरते पूरी करने के बाद भी दूसरे को दे सकता है और दूसरे के पास अपनी जरूरते पूरी करने के लायक भी नहीं है. ऐसे में अगर मैं इसका पैसा वापस ना भी दूं तो कोई अपराध नहीं है. इसके पास तो वैसे ही बहुत है.”
तो मित्रो उधार मांगने वाला पहले से ही झूठा हो या बाद में बदल जाए, पर कुल मिला कर स्थिति एक सी ही होती है. तीसरी स्थिति में मान लो वो सच में मजबूर हो और पैसा वापस नहीं कर पा रहा हो तब भी आप तो उतने ही सफरर हुए ना? अगर आपका उधार दिया हुआ पैसा वापस मिल जाए तो सच में आपसे भाग्यशाली इस पृथ्वीलोक पर और कोई नहीं. कुछ चौथी तरह के लोग भी होते है जो समय पर बड़े शराफत से उधार वापस कर देते हैं लेकिन ये प्रजाति विलुप्तप्राय है और ऐसे लोग बहुत कम मात्रा में पाए जाते हैं. मैंने ऐसे लोगो को भी उधार दिया है जिन्होंने पूरी शराफत के साथ समय पर पैसा वापस कर दिया. लेकिन ऐसे लोगो का किस्सा सुना कर मैं आपको उधार देने के लिए प्रेरित नहीं करना चाहता क्योंकि मैं पहले ही कह चुका हूँ कि ये प्रजाति विलुप्तप्राय है.
निष्कर्ष ये है कि अगर आप किसी को उधार दे तो दान समझ कर दें और वापस पाने की इच्छा ना रखे. अगर मिल गया तो आपका भाग्य और ना मिला तो “उधार दे, दरिया में डाल”.

Tags: Civics

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