हममें से कोई व्यक्ति ऐसा नहीं होगा जो अपने जीवन एक बार नहीं कई बार दहेज़ प्रथा पर निबंध नहीं लिखा होगा.... और यह भी पुरे विश्वास के साथ कह सकता हूँ की किसी को निबंध लिखते वक्त इसमें अच्छाई नज़र नहीं आया होगा... हम इस तरह से लिखते थे.. और अभी भी लिखते हैं... 'दहेज प्रथा समाज के लिए अभिशाप है' 'यह एक सामाजिक कलंक है' 'यह एक विकसित समाज के लिए कोढ़ के सामान है' वगैरा वगैरा... और ऐसी महँ सोंच रखने के लिए मास्टर साहेब, श्रीमान, सर जी, गुरु जी, टीचर, मिस आदि के द्वारा सराहे भी गए होंगे... और ज्यादातर को अच्छे अंक भी मिले होंगे...

 

वो बच्चा जो की आज जवान, प्रोढ़, या बुढा हो गया है.... जो कभी दहेज़ प्रथा पर इस तरह की बातें लिखता था... आज इस प्रथा को बढ़ावा देने में लगा है ऐसा क्यूँ?? मेरे पास तो इसका जबाब नहीं है...  अगर आप में से किसी के पास जबाब है तो बताईयेगा जरुर...

कहीं ऐसा तो नहीं की हम और हमारा समाज दोगला प्रवृति का है.... जिसके खाने के दांत कुछ और दिखने की दांत कुछ और है... हम सार्वजनिक जीवन में इसका विरोध करेंगे.... और निजी जीवन में इसको बढ़ावा देने के लिए तरह-तरह के हथकंधे अपनाएंगे.... हम अपने समाज को दोगला कह रहा हूँ और पुरे ताल ठोंक के कह रहा हूँ.... ये दोगला है... इनकी सोंच दोगला है... काहे की जब अपने बेटी या बहन की बात आती है तो इन्हें दहेज़ प्रथा घिनौना लगता है.. पाप लगता है... अभिशाप लगता है.. समाज का कोढ़ लगता है... लेकिन जैसे ही दुसरे की बेटी या बहन का बात आत है... दहेज़ लेना इनके लिए शान की बात हो जाती है... सामजिक प्रतिष्ठा की बात ही जाती है... दहेज प्रधा की सारी बुराई छू मंतर हो जाती है.... 

 

आज एक लड़की अपने जिनगी और मौत से dmch लड़ रही है... 9 महीने की बेटी उसको पकड़-पकड़ के बिलख रही है..... क्यूँ इसी दहेज़-दानव के कारन... लड़की को मार-मार के अधमरा कर माँइके के रोड परचार दिन पहले छोर दिया गया था... होश आते ही चक्कर आने लगती है... बेहोशी का इंजेक्शन ठोका जा रहा है... अस्पताल प्रशासन लापरवाह नजर आ रही है.... इन सब के बावजूद समाज कह रहा है की आखिर उसे जाना तो उसी घर में है... समाज दबाब बनाएगा सब ठीक हो सकता है..... खाख ठीक हो जाएगा...

 

क्यूँ मार खाने, गाली सुनने, प्रताड़ित होने के बाद भी लड़की को उसी घर में रहना होगा या रहना चाहिए???? क्यूँ उसे सबक नहीं सिखाना चाहिए जहाँ से उसे अपमानित कर निकल फेंका गया... फिर वहां जाने के लिए क्यूँ मिन्नतें करना चाहिए... हमें जबाब चाहिए आपलोगों से... अगर आपलोग के साथ ऐसा व्यवहार होगा तो क्या करेंगे आप??? जबाब चाहिए... जब ये समज आजतक इस प्रथा पर अंकुश नहीं लगा सकी है तो... इस तरह की बातें करना आधी आबादी नग्न अपमान है... 

 

अंत में लड़कियों से उठो जागो और इस अन्याय के खिलाफ अपना आवाज बुलंद करों... इस सामजिक कुरीति के खिलाफ तुम्हे ही लड़ना होगा और अपने बलबूते लड़ना होगा..... किसी से उम्मीद मत रखो... काहे की सब के के सब दोगले सोंच के है....
 

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