रवायत ए अकीदत में नादान बने रहता हूँ 
इतनी सी ज़िद है की इंसान बने रहता हूँ 
दे दूँ गर इजाज़त तो आँखो से आ जाएँगे 
जज़्बातों का मैं अपने दरबान बने रहता हूँ

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