ये नहीं कि मै आज कुछ उदास हूँ,
दूर होकर भी लगता है मै तेरे पास हूँ,
ये तो मजबूर कर देता है वक़्त हमें,
वर्ना मै तेरे हर भीगे अश्क़ का एहसास हूँ |1|
 

शायद खुश होगे तुम दूर तलक अपनी दुनिया बसाकर,
हम भी आबाद हैं इन वीरानियों में घरोंदा सजाकर,
अब तो बस इस घरोंदे का वो कोना ही गुलज़ार है,
जिस कोने में रखा था मैंने तेरी यादों को सजाकर |2|
 

मुस्कुरा देते हैं आज भी बस यही सोचकर,
की कम से कम सुकून ऐ सुपुर्द होगे मुझे भूलकर,
कोशिश है की हर ताबीर में भी बस रखु तुझे संजोकर,
मयस्सर होगा ही ये सोच लेते है तुम्हे अपना सोचकर |3|
 

ये नहीं कि मै आज कुछ उदास हूँ,
तेरी हर मुस्कान का सिपहसालार हूँ ||

Tags: Pholosophy, Love

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