बुरा वक़्त इंसान को क्या से क्या बना देता है |
आशमा को शिखर से श्मशान बना देता है |

कभी जो तिनका पड़ा होता था पैरों तले ,
उस तिनके को आँखों का नासूर सा बना देता है |

इस वक़्त में अपनी ही धडकन लगती है पराई सी,
ये कम्बख्त धड़कनो को मौत का फरमान बना देता है |

इसके बावजूद कोई तो बात है इस वक़्त में,
जो अपनों और परायों की पहचान बना देता है |

यही वो वक़्त है जो आपकी पहचान बना देता है ,
यही है जो पुतले को इंसान बना देता है ||

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