तलाश है, आज भी उन अनसुलझे जवाबों की,
जो कभी अपने आप से पूछता हूँ मै तन्हाई में |
 

की क्यों तेरे आंखों की नमी, मेरे आँशु बन जाती है |
की क्यों तेरे माथे की सिकन, मेरा दिल भर जाती है |
की क्यों तुझसे ये दूरी, मुझे तनहा कर जाती है |
और की क्यों तेरी हर बात, मुझे फरहाद कर जाती है |1|
 

तलाश है, आज भी उन अनदेखे ख्वाबों की,
जो कभी खुली आँखों से देखने की कोशिश करता हूँ तन्हाई में |
 

की काश, तेरी  आखों की चमक मेरी दिवाली बन जाती |
की काश, तेरे पैरों की खनक मेरी राग पहाड़ी बन जाती |
की काश, अपने आप को ढून्ढ पाता तुम्हारे ख्वाबों में |
की काश, वो हमारी मुलाकात एक कहानी बन जाती |2|
 

तलाश है, आज भी उन अधूरे ख्यालों की,
जो न सोचते हुए भी सोचता हूँ मै अपने दिल की गहराई में ||

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