आयी हे तू एक पहेली सी ज़िन्दगी में । छायी हे तू सावन सी ज़िन्दगी  में । इसको पतझड़ बना कर मत जाना ।


तू मत जाना । तू मत जाना ।।

 

तेरी आवाज़ को मैने जीना बना लिया । तेरी हँसी को मेने मकसद बना लिया । तेरी आँखो को मेने सांसे बना लिया । 
इन साँसों को मोड़ कर मत जाना ।।

 

तू मत जाना तू मत जाना  ।।

 

जब आसमान में बादल होते हैं तो लगता हे जैसे तू आ गयी । उन फुआरों से जैसे तेरी बाते आ गयी । 
हां दिखता हे उन बूंदो में चेहरा तेरा । पर उन बूंदो के छींटे उड़ा कर मत जाना ।।

 

तू मत जाना तू  मत जाना ।।

 

तू है समुद्र के टापू सी समेत कर अपनी हरियाली । तू है चमकती चांदनी सी पूर्णिमा की रात्रि । 
मै खड़ा दूर किनारे पर बन कर तेरा मनुहारी ।
छुता टापू से आती हर उन लहरों को सोच कर तूने छुआ होगा  ।
बस मुझे उन लहरों में डूबा कर मत जाना ।।

 

तू मत जाना तू मत जाना ।।

 

तू है चमकते तारे सी मै हूँ धधकता सूरज सा ।
तू है दीपक की रौशनी सी मै पिघली मोमबत्ती सा ।
तू है गुलाब की पंखुड़ी मै बबुल के कांटे सा ।
तू है गंगा सी बहती धारा मै चम्बल सा उजड़ा सा ।
तू है दिल्ली के डिस्को सी मै उज्जैन की मधुशाला ।
तू है स्वर्ग की मेनका सी मै मथुरा का सांवला सा ।
करता रहुगा हमेशा तेरा इंतज़ार बस मेरी रुक्मणि बन कर मत रह जाना ।

 

तू मत जाना तू मत जाना ।।