नहीं लिखूंगा कहानी तो नींद नहीं आएगी और लिखूंगा तो बबाल | कभी कभी सोचता हूँ की काश मुझे कोई नहीं जानता, यूँ ही अलबेला सा एक कागज कलम होता, दूर कहीं बैठ कर रोज मन भर कहानियां लिखा करता | लेकिन वक्त के करवट ने नोटबुक को मेरे सैकड़ो कहानियां के कब्रगाह में तब्दील कर दिया | सामाजिक लाज, प्रश्न वाचक लोगों की भीड़ और जाने अनजाने कई डर ने उसे फेसबुक से दूर होने को मजबूर कर दिया |

 

लेकिन बात ही ऐसी थी की सारे सामाजिक ताने बाने को तोड़ अपने मन की बात लिखने से खुद को नहीं रोक सका | यूँ ही चला गया था, यूँ ही बैठ गया, यूँ ही इधर उधर देखने लगा और क्या बताएं नयनो की बात, कसम से कहानी लिखने की कोई मनसा नहीं थी | कुछ रिलैक्स था ये सोच की अपना जयादा लेना देना नहीं | मनोरंजन हुआ तो ठीक और नहीं हुआ तो कट लेंगें | लेकिन पता नहीं ईश्वर ने इस संसार की कैसी रचना की है या फिर जवानी की दुस्वारियों कहें | फस गया, नयनो के खेल में | और झूठ, आडम्बर तो होती नहीं मेरी कहानी में | जो दिखा सो लिख दिया |

 

तो फिर से हिम्मत कर लिखने को दिल मचला | लेकिन फिर कलम रुक गयी | सामाजिक ताने बाने में ही रहना है न भाई | ये नयन का क्या कब कहाँ किस पर फिसल जाएँ, कब एक नई कहानी बन जाए | लेकिन उन कनखियों का क्या जो यूँ ही फिसली थी | व्यग्रता नहीं शालीनता की प्रतिमूर्ति के तरह पलकें झपकी थी | हमने नयनो को समझाया था | दिल को दिलासा दिया था | फिर कभी लिखने की सोच कलम रुक गयी थी दिल में आहट और बेचैनी लिए |

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