चुपचाप बैठ कर सोचता रहता हूँ कि कौन सा ऐसा कारण है जिसने उत्तर बिहार के विकास को अवरुद्ध कर रखा है | और फिर एक ही ठोस कारण जो हमें नजर आता हैं वो है हमलोगों की सोच | देश दुनिया की तमाम चिंतन में हमलोग हिस्सा लेते हैं लेकिन जब बात अपने क्षेत्र के विकास की आती है तो चुप्पी | और इस चुप्पी का भी अपना निराला इतिहास रहा है जो मुग़ल काल से शुरू हुई और अंग्रेजी शाशन के होते हुए आजाद हिन्दुस्तान में हमलोगों को वारिस में मिली | सैकड़ो सालों से विद्वानों की इस धरती के नीतिनिर्धारकों ने अपने क्षेत्र से पहले देश को रखा और आज देश आगे बढ़ा लेकिन उस विकास में हमारा हिंसा हमें नहीं मिला |

 

अब आने वाले लोकसभा चुनाव को ही देख लीजिये | महीनों पहले से फलां पार्टी, फलां को टिकट..... से मतलब रखने वाले लोग अपने क्षेत्र के विकास पर चर्चा नहीं करते हैं | देश के आजाद हुए 70 साल हो गए लेकिन उत्तर बिहार के लोगों की मानसिक जाग्रति अपने क्षेत्र के लिए अभी भी नहीं हो पायी है | हर चौक चौराहा, चाय पान दूकान में देश के मुद्दों पर गाहे बगाहे बेबाक राय रखने के लिए ये क्षेत्र मशहूर है लेकिन जब अपने क्षेत्र के विकास पर बात करनी होती है तो यहाँ के लोग इसे अपने ज्ञान की तौहीन समझते हैं |

 

आज वर्त्तमान में इस परिपाटी में बदलाव लाने की जरुरत है | अब हमें अपने क्षेत्र की चिंता करनी होगी | पलायन पर बोलना होगा | बंद पड़े तमाम उद्योग धंधा पर आंदोलनात्मक रुख अपनाना होगा | देश में ही एक उपनिवेश बनने से अच्छा होगा की हम भी अपने क्षेत्र का विकास कर देश के विकास में योगदान दें और इसी में अब हमारा कल्याण है | तो इस चुनाव में इस बात की जरुरत हैं कि हमारे क्षेत्र में कोई भी नेता आये हमारे मुद्दा पर बोले | बात चीनी, जूट, सूत, पेपर, खाद मिल की होनी चाहिए | बात क्षेत्र से गरीबी उन्मूलन और वृहत पैमाने पर रोजगार बढ़ोतरी की होनी चहिये | जी हाँ अब हमारा वक्त आ गया है तो अब हमारी बात होनी चाहिए |||

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