कितना बेबस हूँ आज मैं☹
जिसकी हँसी से मेरी हर सुबह चहकती थी,
आज उस हँसी को बस तरसता हूँ,
कितना बेबस हूँ आज मैं☹
जो फूलों सी मेंहका करती थी खुशी बनकर जीवन में,
हर पल बिरहा की अग्नि में वो जलती है,
तपिस की गर्मी में मैं उसे बस तरपते देखता हूँ,
कितना बेबस हूँ आज मैं☹
एक छोटी सी छींक से वो समझ जाती थी कि मुझे जुकाम हुई है,
बड़े प्यार से गुस्सा कर मेरी नादानी पे डाँटा करती थी,
कितना भी उलझन में रहूँ वो बिन बोले सब समझ जाया करती थी,
उसके दिल की हर तरंग चुपके से आज गीत दर्द के बस गुनगुनाती है,
है एहसाह तेरे उन आँसू की जो तुम झूठी मुस्कान से छुपा जाती हो,
रो लेता हूँ मैं भी मन ही मन में इससे ज्यादा कुछ और कहाँ कर पाता हूँ,
कितना बेबस हूँ आज मैं☹
तेरी खामोसी को भी सुन लेता हूँ मैं मगर बिन बोले रह जाता हूँ,
तेरे उपवासों में भूख मुझे भी कहाँ लगती थी,
कितनी भी उदासी के अंधेरों में भटका रहा तेरी एक आवाज की किरण मेरा जहाँ रौशन कर जाती थी,
हाल यूँ है आजकल की उस रौशनी को सदियों से मानो निगाहें तरश गयी,
जिस नगरी कैद है हर खुशी तेरी उस शहर का नाम पता मालूम फिर भी मैं लाचार मौन हूँ,
कितना बेबस हूँ आज मैं☹

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