गमजदा नहीं हूँ बस थोड़ा खामोश हूँ मैं,

देखा जो हश्र जननी का चहुओर अपनी

खुद में उलझा हूँ सवालों में घिरा मौन हूँ मैं,

वो नन्हीं सी परी थी अपने पापा की,

जान से प्यारी लाडली थी अपने माता की,

थी अपने भाई की जान वो,

पली बढ़ी बड़ी ही नाजों से,

हर मुस्कान उसकी उसके घर की जान थी,

पर ये नई जिंदगी की सौगात मिली जब उसे

छोड़ आयी वो आँगन जहाँ बचपन बीता था,

किलकरियों से उसके भरा जिस घर का हर कोना था,

थी अपने पापा की प्यारी बिटिया वो मगर

अब किसी अनजान के साथ बंधी उसकी साँसों की डोरी है,

हाँथों में सजी उसके किसी के नाम की आज मेंहदी है,

मिलेगी मुकम्मल जहाँ उसे आँखों मे एक नया ख्वाब है

पर हक़ीक़त की तपीश बहुत गर्म और अंधेरा बहुत गहरी है,

जिसे परमेश्वर मान कर विदा लिया बाबुल से,

वो ही उसकी रूह को खौफ जदा आज कर रहा,

हर मोड़ पर जिंदगी के उसे नीचा दिखा रहा,

थामा था जिसका हाथ हर सांस जिसके नाम कर जाने को,

आज हाथ उसीका उठता है नारी की अस्मिता को तार तार करने को,

जिस मुखड़े पर मुस्कान थी कभी आज देती दस्तक काली सी परछाई है,

जो दुलारी थी पापा की आज थोड़ी सम्मान तक को भी प्यासी है,

पौरुष साबित करने में जननी की अस्मिता तक भंग कर डाली है,

जो हमसफ़र था उम्र भर का आज ये कैसी हैवनियत नारी के संग निभाई है,

जननी की यूँ बदबख्त हालत देख आज रूह मेरी कंपकपायी है,

गमजदा नहीं हूँ बस थोड़ा खामोश हूँ मैं ।

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