दरभंगा शहर में जाम है, साफ सफाई की व्यवस्था नहीं है, पीने के पानी के लिए हाहाकार मचा हुआ है और भीषण गर्मी में भी कई जगहों जलजमाव देखने को मिलता है | सरकारी भूमि माफिया तत्वों द्वारा अवैध रूप से कब्जा करने का खेल चल रहा है और भी कई समस्याओं का अंबार लगा हुआ है | लेकिन यह कहानी सिर्फ एक शहर का नहीं है | अकेला दरभंगा शहर के तमाम कस्बे जो रोड किनारे व्यापारिक प्रतिष्ठान के रूप में विकसित हुए हैं बेनीपुर, बहेरी, बिरौल, हायाघाट, घनश्यामपुर, मनीगाछी सबकी एक ही कहानी है |

 

हमारा समाज इतना सुस्त हो गया है कि एक गहरी चुप्पी हमेशा छाई हुई लगती है | इसका समाधान हेतु राजनीतिक दलों और उनके नेताओं में एक व्यापक समझ अभी तक विकसित नहीं हो सका है | लंबी अवधि के कार्य योजना के अभाव में इन शहरों और कस्बों का भविष्य अंधकारमय नजर आता है | इन शहरों में रहने वाले लोगों के भविष्य के लिए कठिनाइयों का श्रोत बनकर उभर रहा है जिसे हमारे सत्ताधीश नहीं देख पा रहे हैं  |

 

बढ़ती जनसंख्या शहरों के लिए अभिशाप बनता जा रहा है | पिछले कई दशकों से एक भी योजना बिहार सरकार या राज्य के नगर निगम के द्वारा नहीं बनाया गया है जो टाउन प्लानिंग से सम्बंधित हो | निगम और परिषद् की बैठक में तमाम लूट का के योजनाओं पर चर्चा और हंगामा होता है, लेकिन कभी भी भविष्य की रूपरेखा नहीं बनाई जाती है |

 

सत्ता में बैठे लोग जनकल्याण की बात तो से कोशो दूर सार्वजनिक संपत्तियों पर अपना हक जताने के लिए अपना रसूख का इस्तेमाल करने में लगे रहते हैं और जनता परेशान होकर अभाव में जिंदगी काटने को मजबूर रहती है | किसी जनप्रतिनिधि को शहरों के भविष्य की चिंता नहीं है और विकास का मतलब राशन कार्ड, इंदिरा आवास, शौचालय, गैस सिलिंडर और अनवरत प्रखंड मुख्यालय का चक्कर लगाना हो गया है | प्लानिंग की बात इन कामों में इस कदर उलझ गयी है कि सालों से चली आ रही बेजान हो चुकी व्यवस्था में आमूलचूल बदलाव करने के बजाय हमारे छोटे शहरों को बदहाल होने के लिये छोड़ दिया गया है |
 

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