कभी कभी जिंदगी मौत से भी शायद भारी होती है,

मौजूदगी भी अक्सर न होने से ज्यादा तकलीफ खड़ी करती है।

मगर रो मत गालिब अभी की वो वक्त आया नहीं,

आंसुओ की जरूरत तुम्हें एक रोज बहुत ज्यादा पड़ेगी।

जब हम बस तेरे यादों में होंगे सामने नहीं,

जिक्र हमारा बस तेरे अल्फाजों में बचेगा तेरे हाथ में मेरा हाथ नहीं ।

तू बस खुश रहा कर शायद तुम्हारी मुस्कान हमें कुछ और दिन जीने को मजबूर रखे,

तेरा हंसता चेहरा इन आंखों में थोड़ी और समेटने की चाहत बची है।

यूं तो हम जानते हैं कि जो मैं न रहूँ तो तुम्हें तकलीफ देने वाला भी न रहेगा,

बस फर्क इतना ही पड़ेगा मेरे जाने के बाद कि तुम जो रोई तो तुझे बाहों में लेकर तेरे आंसू पोंछने वाला हाथ मेरा न होगा।

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