सोचा खड़ा हो लूं कुछ देर

आकर खिड़की पर सोने से पहले

कुछ यूँ रात आज नहायी हुयी है

बूँदें आकर ठहर गयीं कुछ चेहरे पर

उड़ते हुए हवा के थपेड़ों के साथ

जैसे शायद चार बूँद मोती के

तुम्हारी पलकों से लुढ़क गए हों ।


खोले हैं किवाड़ आज

जो बंद रहते थे तुम्हारे जाने के बाद

टकरा गया रातरानी सा हवा का झोंका

लाया हो जैसे पैगाम तुम्हारा

जो लिख कर उछाल दिया हो

हवाओं के कागज़ पर तुमने

होठों की गुलाबी मुसकान वाली स्याही से ।


आ बैठा हूँ तन्हा अकेले में आज

तारों के समंदर की सतह के नीचे

कि लपेट लिया है चाँद ने मुझको

पूनम की शांत सफ़ेद चादर में

जैसे भर लिया हो तुमने आलिंगन में अपने

आँचल तले सकुशल छुपा लेने के बाद।

Tags: Poetry

Sign In to know Author