काली अँधेरी रात जब सब थे घरो में बैठे
आश्चर्यचकित रह गया जब देखा वह दृश्य मैंने
मंदिर से गुजरते वक्त जब प्रणाम करने को चढ़ा
ऊपर जाकर देखा के तीन लोगो के बीच था पड़ा एक गढ़ा
अज्ञात इस स्थिति में प्रभु को नतमस्तक कर मैं आया नीचे
तूफान के डर से, कदम तेज कर शीग्र पहुँच गया घर पे

थका हरा मैं आते ही पलंग पर लेट गया
और लेटते ही मानो घहरी नींद में सॊ गया

फिर घुली आँख साये साधे छे: बजे
और उठते ही खोला अखबार का पहला पन्ना मैंने
नींद का वह नशा मनो गायब ही हो गया
जब मैंने पढ़ा,
"नवजात शीशो की हत्या, उसके माँ बाप द्वारा "
विस्तार से पढने पर पता चला
वह झोड़ी थी एक लड़के की प्यासी
और बाबाओं की बातो में आकर दे दी अपनी बेटी की बलिदानी
मानते थे ऐसा करते ही हो जायेंगे इश्वर खुश
और उन्हें शीघ्र मिलेगा पुत्र प्राप्ति का सुख

मानो! यह वह ही थे जिन्हें देखा कल मंदिर में मैंने
हाय! वह लाचार शिशु जिसके नासीब में थे ऐसे घर वाले.

हँसी आती है ऎसी प्रथाओं पर जो करते है मानव जाती का ही नुक्सान
सोचो तुम ऎ मानव! खुश कर पाओगे किसी को तिरस्कृत कर उसका ही प्रसाद?
मंदिर मश्जिद घूम लेने से ही क्या सीमित हसी प्रभो की भक्ति?
कब समझेगा ये मानव अन्धविश्वासों में जकड़कर,
रोकता है वह अपनी ही प्रगति?


कुछ दिन बाद एक और घटना सामनें आई
एक छु आ- छु त को मंदिर में घुसने पर उम्र कैद की सज़ा सुनाई
था उसका यही अपराध की
उसके आने से हुआ देवी देवताओं का अपमान
और अब उन रूठे हुआ देवताओं को मनाने के लिए
ज्ञानियों ने घोषित किया है वह कठूर परिणाम
आप ही बताईये नॊजवान
क्या उसी के दूत को कष्ट देने से वह हो जायेंगे प्रस्सन
या उन्ही के द्वारा भेजे गये की बलि देने से
उन्हें मिलेगा सुख चैन और आनंद?!

धर्मो की प्रसिधी के लिए हुए लढाई झगड़े
"मेरा धर्म महान है" कह कर नारे लगाए सबने
इस बीच न जाने कितने मासोमे ने जान गवाई
ऐसा नीच कार्य कर इन लोगो की निपुणता सामने आई

हाये!
हम कुत्ते बिल्ली को तो घर में प्यार से पालते है
पर स्वहें वो ज़हरीले साप है जो अपनी ही नस्लों को खाते है.

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