आज उदासी कुछ गहरी सी है मन ही मन सोचता जा रहा हूँ कभी अपने अतीत में तो कभी वर्तमान में , भविष्य की तो सोचने से ही डर लगता है . बहुत सोचने के बाद भी कुछ ही लम्हे हैं जो ख़ुशी के याद आते हैं . लगता है बरसों से इस्सी तरह जीता जा रहा हूँ . कहने को तो सब अपने हैं पर महसूस करो तो सभी बेगाने से लगते हैं . कभी सोचता हूँ की जो भी जरा सा करीब है उसके सामने अपने दिल की बात कह दूं पर फिर यह भी सोचता हूँ की कब तक वह मेरा बन कर रह पायेगा .  कठिन है यह तय कर पाना .जिसे भी सब के सामने अपना कहा वही से दूर हो गया . अब तो न किसी को अपना बनाने का दिल करता है न ही उसे बताने का मन करता है .बहुत संभालता हूँ अपने आप को , पत्थर भी कर दूं तो क्या हालात के सामने यह भी कभी कभी टूटने की कगार पर आ जाता है , या यह कह सकता हूँ की टूटने को दिल कहता है . फिर सम्भाल लेता हूँ अपने आप को यह सोंच कर , की टूटने के बाद भी तो कुछ न होगा . आगे और भी टूटना पड़ेगा .

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