चारदीवारियों की महफूज़ हवा ,
उधार सी है
नर्म बिस्तर की नींद ,
उधार ही तो है
हर वो निवाला बामुश्किल
उतरता है जो हलक से
उधार का ही तो है
सुनती हूँ चुप-चाप ,
घुटने पे ठुड्डी रखे,
--------- ब्याहता हो !

खुदाया ,सौगंध तुझे
उन नज्मों की
निकली हैं जो मेरे ज़ख्मो से,
तेरे घर आऊं उससे पहले ,
सारा उधार उतार देना !!!!!!

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