हाँफते ,दौड़ते ,तेजी से ,दो -दो सीढियां एक साथ चढ़ रहा था ,सांस फूली जा रही थी ,बड़ी जल्दी में था वो ,एक झटके से उसने कमरे का दरवाज़ा खोला,सामने ही खिड़की के पास बैठी हुई थी वो चुपचाप ,वैसी ही लग रही थी


क्या हुआ ?क्या कहा डॉक्टर ने ?

कुछ जवाब नहीं दिया उसने

कुछ तो ,कुछ तो इलाज़ होगा ना ,कोई थेरेपी ,कोई मेडिसिन .......

हाँ है ना ,भीगी पलकें बोली थी


क्या है मुझे बताओ ,कंही से भी ले कर आऊंगा ...........

" इत्ती सी हंसी ,इत्ती सी ख़ुशी ,टुकड़ा एक…........मुस्कुराते हुए कहा था उसने

टिक ..टिक ....टिक

समय चल रहा था ,पल ठिठक गए

आगे बढ़ उसने उसे कस के गले लगा लिया ,लगा सारा संसार मिल गया उसे

उसे लगा वो अपने घर आ गई

अब कंही जाने की ,कंही पहुँचने की कोई जल्दी नहीं थी.

Tags: Fiction

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