यह कैसी हवा चली है
मैंने सोचा की में नहीं बदलूँगा
पर क्या करून सारा मंजर ही बदल गया

सफ़र पे निकला घर से बहार की उम्मीद में !
घर पे सब पहले सा मिलेगा
में तो जैसा था वैसा ही आया
दंग सा रह गया जब बदलते लोगों को देखा .

शायद में बदल गया हूँ तभी सब बदला लगता है
या हवाएँ , निगाहें , रिश्ते सभी जो करीबी थे
आज पहचाने पहचाने अनजाने से हो गए हैं

शायद हालत से सभी डर गए हैं
या वह हालत जिसमें ये पनपे थे बदल गए हैं
अगर ज़मीन ही बदल गयी तो दरख़्त का क्या
यह तो आबो हवा के मोहताज़ हैं

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