कई दिनों से मेरे अंतरमन में एक द्वन्द चल रहा था । मनुष्य की संवेदनहीनता और गिरते नैतिक मूल्यों को देख कर ऐसा प्रतीत होता है कि मनुष्य के अस्तित्व पर ही संकट की घटायें मंडरा रहीं हैं और य़ह देखते हुए मेरा मन अशांत है।उसे डर है कि कही जो इतने सहस्राब्दियों से चली आ रही भारतीय सभ्यता जिसने इतने कठिन परिस्थितियों से अग्रसर होते हुए आज यहाँ पर पहुची है ,कहीं लुप्त न हो जाये ।या फिर किन्हीं दियों की टिमटिमाती रौशनी के निरंतर प्रयास से कुछ प्राण प्रवाहित होती रहेंगी।द्वन्द है कि वो जो मनुष्य आज के वातावरण से जो अछूता है किसपर विश्वास करे ?
उसपर जो वो अपने नेत्रों से देख रहा है या फिर उसपर जो उसे बताया जाता है कि हर वस्तु जो दिखाई देती है वो सत्य नहीं है ।अब यह उपाय भी अप्राकृतिक होगी की उन सब मनुष्यों का नाश कर दिया जाए जो कि के मनुष्य नाम पर एक कालिख हैं क्योकि मेरी भी आतंरिक इक्षा यही होती है किंतु ये भी सत्य से कम नहीं की आज की परिस्तिथियो में मनुष्य का मनुष्य बने रहना भी कठिन है और ऐसे में यदि कोई सच में मानव है तो वो सच में ही पूजनीय है ।
कुछ ऐसे मनुष्य हैं जिन्हें किसी और की कर्मठता उनके आँखों नहीं सुहाती है और वे सब उसे उसके पथ से डिगाने की लिए निरंतर प्रयासरत रहते हैं और प्रजातंत्र के नाम पर ,उसकी अस्मिता के नाम पर अपने अपराधों पर पर्दा डालना चाहते हैं,उसे सही ठहराते हैं ।दूसरी तरफ भोली प्रजा है जो केवल भोली होने का स्वांग रचती है जो अपने थोड़े से स्वार्थ के कारण ,लालच के कारण उन जैसे लोगों का साथ देती है और अपनी आँखें बंद रखती है । पर सिर्फ दोष उनका ही नहीं है उतनी ही दोषी हमारी वो जनता है जो शिक्षित है जो बिना मतदान के ही व्यवस्था सही होने की आशा करती है और फिर जब कुछ नहीं बदलता तो अपने देश से ही घृणा करती है और फिर विदेश में बस जाती है। जो ऐसे सपने देखते हैं की कोई चमत्कार से सारी व्यवस्था ठीक हो जाएगी उन्हें ऐसे सपने देखना बंद कर देना चाहिए क्योंकि ऐसे सपने देखने का न उन्हें अधिकार है और न ही वो सपने कभी पूरे नहीं हो पाएंगे । सबको पता है की अगर सारी जनता एक हो जाती है और विद्रोह होता है तो ये सब उसे दबाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे । ये बात उन्हें भी पता है की अगर ऐसा समय़ कभी आया तो उन्हें अपना सर छिपाने तक के लिए भी जगह नहीं मिलेगी ।पर हमारी जनता को ये विश्वास नहीं है कि हमारे जैसे लोगों की एकता ही ऐसे निकम्मे शाशकों को सबसे ज्यादा भयभीत करती है ।इसका उदाहरण हमने मिस्र में और अपने देश के ही राजधानी के रामलीला मैदान में देख चुके हैं।
पर अब भी कुछ दियों का प्रयास है किसी दिन तो यह विश्वास की ज्योति हमारी प्रजा में जलेगी और जिस दिन भी ये ज्योति जलने लगी उस दिन उन दिय़ों सबसे बड़ी उपलब्धि यही होगी ।
कुछ लोगों के विचार से राजनैतिक उपाय द्वारा ये असंभव दिख सकता है किन्तु यही एक मार्ग ऐसा है जो दीर्घकालिक है क्योंकि सत्ता का लोभ अत्यंत विनाशक है और अन्य़ कोई मागॆ हमें उसी स्थान पर ल खड़ा करेगा जहाँ से हमने निकलने का प्रयास किया था और उसके बाद की परिस्थिति पहले से ज्यादा घातक होगी।यह बात तो किसी से छिपी नहीं है कि हम अपने क्षीण विश्वास के कारण ही अपने लक्ष्य तक पहुचने में असफल रहे हैं और कुछ हद तक इसमें उनकी एकता भी शामिल है जिनके विरूद्ध हमने ये बिगुल फूँका है और हमें उन लोगों से ये सीखना चाहिए की कैसे सारी अलग-अलग विचारधारा को भुला कर वो लोग हमें अपने पथ से डिगाने को एक साथ आ जातें हैं ।ये अत्यंत ही सराहनीय एकता हमारे अन्दर नहीं दिखती है और हम असफल होते हैं ।
हमें ऐसे लोगों से भी सावधान रहना होगा जो सिर्फ राजनीति के लिए बस हमारे साथ झूठी संवेदना रखते हैं और केवल अपनी राजनैतिक रोटी सेकने के लिए ही बस हमारे साथ फोटो खिचवाना पसंद करते हैं ।पर थोडा सा ही सही किन्तु अपने लक्ष्य में की दिशा में हम आगे तो बढे है, हमें पता है कि अभी बहुत कुछ बाकी है पर हमारा प्रयत्न निरंतर जारी रहेगा ।वो हमे अपने पथ से हटाने का अथक प्रयास करेंगे ,हमें विभाजित करेंगे ,हमें आपस में खंडित करना चाहेंगे और इसके लिए वे अनेक नीति -अनीति अपनाएंगे किन्तु ये हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम उस नीति का कैसे जवाब देते हैं ।उसके लिए हमें निरंतर प्रयासरत रहना होगा ।हो सकता है हमें अपने लक्ष्य तक पहुचने में हमारी उम्र निकल जाये पर हम अपनी वाली पीढ़ी को ये सौगात अवश्य देना चाहेंगे ।

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