कितना फ़र्क है मुझमें और मेरे तसव्वुर में...!

इधर...........
हर पल तुमसे दूर,
तुमसे जुदा,
तुम्हें महसूसने, सोचने,
छूने, देखने की कोशिश में हलकान......
मैं....,

और उधर...........
हर लम्हा तुम्हारे साथ-साथ,
सुबह तुम्हारे साथ जागता,
दिन भर तुम्हारे पीछे-पीछे चलते हुए
मन के साहिल की गीली रेत पर चहलकदमी करता,
शाम तुम्हारी ऊँगली थाम,
मस्तमौला सा....चाँद के पार कहीं बेफिक्र घूमता टहलता...
और रात होते ही....
ज़माने भर से बेपरवाह.....अपने ख्वाबों का तकिया लगाये
तुम्हारे आगोश में चैन की नींद सोता
मेरा तसव्वुर....,

सच....,
जब से तुमने बताया है न
कि मेरा तसव्वुर साँस-साँस तुम्हारे साथ रहता है
तब से मैं बेइंतहा जलने लगी हूँ......
खुद अपने ही तसव्वुर से.....!

- प्रतिमा सिन्हा -

Sign In to know Author