आज की रात बड़ी तनहा है
आज की रात रोई लगती है
किसी से बिछड़ गयी शायद
बहुत खोई खोई लगती है

उफ़ ये गर्म हवा; ये चांदनी की तपिश
जैसे शोलों ने इन्हें फूँका हो
जिस्म-ओ-जाँ दोनों जले जाते हैं
जैसे भट्टी मैं इन्हें झोंका हो

ये समंदर के किनारे फैली बालू
जैसे बिखरे हों ख्याल मेरे
ये किनारे हैं के चलते जाते हैं
जैसे ज़ेहन में सवाल मेरे

कितना खामोश है समंदर भी
जैसे राह तकता हो तूफानों की
मेरा दिल है के भरा आता है
आंधियां जैसे हों अरमानों की

आज की रात और मेरा दिल
फर्क कोई नहीं है दोनों में
ये भी रोई है; मैं भी रोया हूँ
ये भी खोई है; मैं भी खोया हूँ
आज की रात बड़ी तनहा है

-शिव

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