"कुछ ख्वाब अधूरे से
कोई प्यास अधूरी सी
इन आँखों में क्यूँ हैं
एक आस अधूरी सी

राह पर जमी रही ये नज़रें
इंतज़ार की इन्तहा होने को आई
फिर भी ना माने मन बावरा
तकता रहा किसी के दीदार मे
ख्वाइश थी मुकम्मल जहाँ बसाने की
रिश्तो के बाज़ार मे

दिन थे वो सुहाने थी रातें भी खुशनुमा
थे हज़ारों परवाने रोशन मोहब्बत के नाम पर
मेरे दिल का मिजाज़ भी था आशिकाना
कम्बख़त था मेरा और धड़कता था किसी और के नाम से
इश्क के सफ़र में हमसफ़र दिलनशी था
दिलबर की अदाओं का आलम हसीं था

फिर शाम घिर आई हैं
फिर यादों का वो घेरा हैं
तेरे निशाँ की तलाश में
खोया चैन-ओ-सुकून मेरा हैं

इस शब् के सियाह साये में
खामोशी हैं, वीरानी हैं
तेरे बिना अधूरी, बिन तेरे अनकही
कुछ ऐसी मेरी कहानी हैं"

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