ना चला न रुका
ये सफ़र क्या रहा
ना जला ना बुझा
बस धुआँ सा रहा

प्यार की राह में
फिर भी चलता रहा
प्यार की चाह में
फिर भी जलता रहा

हाथ में हाथ था
कोई तो साथ था
या भरम था मेरा
मुझको छलता रहा

स्वप्न था स्वप्न है
स्वप्न ही रह गया
तुझसे ऐसे मिला
जैसे मारीचिका

क्या कहूँ क्या करूँ
मैं चलूँ या रुकूँ
यूँ ही ठिठका हुआ
ढूंढ़ता कुछ रहा

ना चला न रुका
ये सफ़र क्या रहा
ना जला ना बुझा
बस धुआँ सा रहा

-शिव

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