है आज बहुत हर्षि‍त मन मेरा,
शि‍क्षक दि‍वस है पर्व सुनहरा।
इस पुलकि‍त पावन अवसर पर,
वंदन करता है मन मेरा।।

आपकी महि‍मा आपका गौरव
आपका चिंतन आपका ज्ञान।
आपके ही उपदेश वचन
करते हैं सबका कल्‍याण।।

आपकी गरि‍मा का क्‍या बखान करें,
आपके गौरव का कैसे गुणगान करें।
डरती है लेखनी मेरी,
न कहीं कोई यह भूल करे।।

आपने ही त्रि‍दोष बताए,
सप्तधातुओं से ज्ञान कराया।
'आयुर्वेद' के अष्ट-अंगों से,
आप ही ने तो संज्ञान कराया।।

आयुर्वेद का इति‍हास बताकर,
इसके महत्‍व का अहसास कराया।
दर्शन का दृष्टा बनाकर,
आत्‍मा-परमात्‍मा का मि‍लन कराया।।

संस्‍कृत के संस्‍कार बताए,
और भाषा का ज्ञान सि‍खाया।
आयुर्वेदि‍क चि‍कि‍त्‍सा पद्धति‍ से,
'आयुर्वेदामृत' जन-जन को पि‍लाया।।
ऐसे गुरुजन आपको हृदय से वंदन,
इस पुलकि‍त-पावन अवसर पर।
पुन:-पुन: सहस्र नमन,
पुन:-पुन: सहस्र नमन।।

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