नरम हाथों बनी रोटी से दूर
रात की थाली खुद लगाता हूँ,
नहीं चलता अब नंगे पाँव फिर भी
मीठी सी डांट के लिए तरस जाता हूँ,
चोट लगे तो रोता नहीं मैं अब
हल्दी वाला दूध खुद ही बना लेता हूँ,
मेरा माथा अब अकेलापन है चूमता
अपने गाल अब खुद ही खींच लेता हूँ,
नहीं है यहाँ कोई जो मुझे सोने को बोले
खुद ही ओढ़ी ओढ़ कर सिकुड़ जाता हूँ,
कैसे तेरे पास आऊँ तेरी गोद में तुझे बताऊँ
माँ मैं तुझे रोज़ बहुत याद करता हूँ...

Tags: Relations

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