मेरे मन को कल रात को कुछ बेचैनी मालुम हो रही थी पता नहीं क्यों नींद नहीं आ रही थी।मुझे लगा की कहीं मेरा मन भी इश्क -विश्क के भयानक रोग से ग्रसित तो नहीं हो गया।

पता किया तो बात कुछ और निकली और मेरे जान में जान आई।कुछ दिनों से मेरा महाज्ञानी मन अपना career change करने की सोच रहा है।अब रुपये का तो आप सभी जानते हैं कि वो किस गति से गिर रहा है।
अगर Newton आज मौजूद होता तो उसे भी gravitation के बारे में कुछ नया सोचना पड़ता।ये बात अलग है कि अगर वो यहाँ आ जाये तो उसके यहाँ पहुचने से पहले भौतिक विज्ञानं के छात्र उसे वापस यमलोक भेज देंगे।
मैंने ऐसा इसलिए सोचा क्यूंकि अब रुपये के गिरने का सिलसिला तो चल रहा है और आदमी तो उसके पीछे भागता है मसलन उसका भी गिरना लगभग निश्चित है। तो मैं सोच रहा था कि ऐसे अस्पताल का टेंडर भर ही दिया जाए।डॉक्टरों का जुगाड़ तो हो ही जायेगा। अपने बचपन के दोस्त अमेरिका में डॉक्टर हैं, वहीँ से किराए पर ले आऊंगा। local लेवल पर दिक्कत हो रही है। यहाँ तो गिने चुने ही रह गए हैं और वो भी जाने का सोच रहे हैं मजबूरी में। सरकार ने उनपर आने जाने का ban लगा दिया है।सोच रहा हूँ की इलाज का खर्च भी डॉलर में ही लूं। वो तो गिरता है नहीं तो कम से कम अपनी हड्डी पसली सही सलामत रहेगी और वैसे भी यहाँ तो पहले ही डॉक्टरों की हड्डी पसली एक हो चुकी है।और यहाँ के नेता लोग की बीमारियों के स्पेशलिस्ट भी वही पाए जाते हैं -अमेरिका में।तो वहां से अपने मित्रगण आ जायेंगे तो लोकल लेवल का जो बढ़ता हुआ डिमांड है, वो भी पूरा हो जायेगा और गाँव देहात के लीडरो के भी घुटने और दिल बदलना आसान रहेगा।…सोचता हूँ 50% डिस्काउंट रख दूं।

फिर याद आया कि डॉलर की कीमत तो तेल पर depend करती है। और वैसे भी अपने देश में तेल की खपत तो बढती ही है। अब गाडी मोटर के अलावा तेल के उपयोग कई तरह के कामों में लाया जाता है। हमारे आला अधिकारी और अफसर के हाथ पैर जकड जाते है। काम करते हुए तो काफी दिन बीत जाते हैं तो उनसे काम निकालना आसान नहीं होता तो ऐसे जंग लगे कलपुर्जों का ध्यान भी तो रखना पड़ता है।मतलब की सिचुएशन की गंभीरता को समझते हुए मेरा फैसला सही लगता है।
सोचता हूँ कि अरब चला जाऊं वहां किसी शेख से दोस्ती हो जाये तो बस मज़ा आ जाये। फिर कुछ एक दर्जन तेल के कुँए उससे मांग लूँगा तो लाइफ सेटल हो जाएगी और फिर रिश्तेदारों को भी employment मिल जाएगी। साथ ही घर आने जाने का पेट्रोल डीजल का खर्च का कोई टेंशन नहीं रहेगा । शेख की दोस्ती के तो अलग फायदे है ही बस उससे मेरी दोस्ती हो जाये। अब मैं कोई filmstar तो हूँ नहीं कि वो दोस्त बन जाये।तो ये प्लान भी फेल ही समझो।

बड़ी ही मुश्किल हुई। तेल का मसला तो हल नहीं हुआ।चलो इस ख़याल से फुट लो। इसपर दाल नहीं गलने वाली।

hmm .....Actress अगर किसी तरह बन जाऊं तो दोस्ती हो सकती है। फिर क्या ...फिर तो तो ऐश ही ऐश है।अब ये तो जग ज़ाहिर है की फिल्म हिट हो या फ्लॉप उनकी रेट कम नहीं रहती और फिर किसी काम के लिए 2 -3 करोड़ तो उनकी आम फीस है। और ऊपर से दीवानों की फ़ौज का तो क्या कहना ।
पर ये मामला भी ज़रा सा टेढ़ा लगता है क्युकि अब एक एक्ट्रेस का एसेट्स पाने के लिए कम से कम कुबेर के खजाने का थोडा सा भाग तो मॉडर्न ज़माने के शुश्रुतों और अश्विनी कुमारों को दान करना ही पड़ेगा।वो तो मेरे पास है नहीं।
अगर रहता तो ये ख़याल ही क्यों आता।वैसे भी आजकल actresses की shelf life कम ही रहती है- ज्यादा से ज्यादा 5 साल बस।तो long term के लिए ये निवेश कम ही fruitful लगता है।
एक्टर बनना ज्यादा हितकर जान पड़ता है क्युकि उनकी shelf life का तो क्या कहें बस चलती जाये . . .चलती जाये ।
लेकिन उसमें भी काफी मेहनत करना पड़ता है,चेहरा तो फिर भी managable है पर बॉडी शोडी भी चाहिये ही।बिना उसके तो आजकल हीरो क्या, विलन तक को रोल नहीं मिलता।
तब इतनी मेहनत करने और खाने पीने की औकात रहती तो क्या ज़रूरत थी एक्टर बनने की ।ऊपर से क्या पता क्या क्या करना पड़े रोल पाने को। किस मिनिस्टर के बिटिया की शादी में नाचना पड़ जाए और कहीं भाई लोगों का पंगा पड़ गया तो मेरी तो कम्पलीट holiday हो जाएगी ...cofee with karan के बदले यमराज विथ fun .....न बाबा न ।आग लगे इस प्लान को।

तो ये प्लान भी discard ही करना पड़ेगा।
हाँ ,पर याद आया की आज कल elections का सीजन भी चल रहा है। हर तरफ कोई राजनेता दहाड़ रहे हैं।मुझे लगता है कि पुरे भारत में ये ही ऐसा मौसम है जब इंसान दहाड़ते है
पता नहीं ये डिस्कवरी वालों को क्या हुआ, अभी तक इसका राज़ क्यों समझ नहीं आया। अभी तक तो बीसियों प्रोग्राम बन जाने चाहिए थे।
मैं सोच रहा हूँ की मैं भी हाथ आजमा लूं। क्या पता मेरी भी किस्मत खुल जाये।अगर विधायक बन गया तब तो 10-20 साल का तो खर्चा- पानी निकल ही आएगा और अगर मंत्री बन गया तब तो कोई न कोई खदान अपने हाथ लगा ही लुंगा और तब तो कोई टेंशन नहीं रहेगी।
पर ये बात मेरे नामुराद मन को मंज़ूर न हुई।
मेरे अंतर्मन ने फिर टांग अड़ा दिया और बीच में ही कूद पड़ा।
कहने लगा की आज कल politics बिलकुल ही सेफ नहीं है। पोलिटिकल मर्डर्स होना तो आम बात है और किसी सरफिरे भाई की हट गई तो तुझे ही हटा देगा .....दुनिया से।
और अगर इन सब से बचते-बचाते कहीं मंत्री बन गए तब किसी न किसी दिन तुमको भी सीबीआई अपने जाल में फसा ही लेगी। और अगर गलती से भी अगले चुनाव में हार गए तब तो तुम्हे सडको पर आना ही होगा।
मैंने सोचा की इस प्यारे छोटू की बात भी सही जान पड़ती है। क्या ठिकाना, कही सही में नेता बन कर पुष्पों के हार पहनने की चाहत में मेरे ही तस्वीर पर न हार चढ़ जाये।और ऊपर से हर महीने का चढ़ावा डॉन, भाई को भेजना पड़ेगा उसका अलग टेंशन और नेक्स्ट चुनाव में ससुरा पूरा फीस गटक लेगा। और कभी विरोधी कीचड फेकने लगे तो तुमको भी गटर में उतार कर ही दम लेंगे।
तो ये लो एक और शानदार आईडिया शहीद हो गया।

अब क्या करें।इस बेचारे मन को कुछ नयी तरकीब नहीं सूझ रही थी तभी उसे याद आये मशहूर मुन्ना भाई।क्या बात है भाई बनने में बहुत ही अच्छा स्कोप है और फ्यूचर भी अच्छा है देखा है न अपने दाऊद भाई को ...यार क्या लगता है एकदम हीरो जैसा।और क्या ऐश-ओ-आराम है उसके। किसी president की सेक्यूरिटी से कम नहीं है बन्दे की सेक्युरिटी।सारे काम फोन से। किसे टपकाना है , हफ्ता वसूलना है और किसे धमकी भेजनी है -सबका डाटा बेस तैयार रहता है।
बस एक इशारा और सामने दस-बीस खोखा आ जाता है। और फिर प्रेजिडेंट साहब की दोस्ती का तोहफा अलग।साथ में जनरल साहब की दोस्ती भी चाय-पान के लिए ऑफर में डिस्काउंट के साथ।
पर जब ओसामा की याद आई तब ये सब प्लान की भी वाट लग गयी …उस नामुराद को पता नहीं कही से अमेरिकन्स ढूंड लिया ।
बेचारे को चैन की नींद भी नसीब न हुई।रात में ही बेचारे को चलता कर दिया ।
मुझे लगा कि इन सालो का भी कोई भरोसा नहीं,कब मुझे नम्बर 1 आतंकवादी घोषित कर देंगे और फिर मुझे भी कही उसकी तरह समुन्दर में न फेक दें।
जनरल साहब तो उस टाइम हाथ मलते रह गए थे। मुझे क्या ख़ाक बचा लेंगे।
और इधर की पुलिस की कहीं दोस्ती हो गई तो मुझे तो ये कही का नहीं छोड़ेंगे।
तब मुझे मजबूरन तोरा बोरा की पहाड़ियों पर पनाह लेनी पड़ेगी। पता नहीं वो भी सुरक्षित रहेगी कि नहीं ,ड्रोन तो वह ऐसे बम गिराते हैं जैसे ओले पड़ते हों।
खैर भाईगिरी का भूत भी उतर गया इन खयालो के आते ही।
अब सोचता हूँ की किसी ज्योतिषी बाबा के पास जाऊं वहीँ निकालेंगे मेरे career की मुश्किलों का हल।
बाबा से याद आया कि ये भी आज कल टॉप प्रोफेशन चल रहा है।कोई इन्वेस्टमेंट ख़ास नहीं है बस जरा सा गेट अप करना पड़ेगा और भाड़े के एक दो दर्जन शिष्य से काम हो जायेगा।पार्ट टाइम वालों से काम चला लूँगा।और क्या बस मामला सेट हो जाये तो पहले प्रवचन और फिर प्रवचन स्थल पर ही कब्ज़ा कर आश्रम।और फिर क्या फिर मेम्बरशिप और दान दक्षिणा अलग से।without इन्वेस्टमेंट झट से कमाइ ....फायदा ही फायदा है ।और फिर उसके फ्रैंचाइज़ी जगह जगह । और फिर क्या किसी कॉर्पोरेट घराने से कम का टर्नओवर थोड़े ही होगा और फिर शेयर बाज़ार का चक्कर भी नहीं ।
फिर स्वामी XYZआनंद चैरिटेबल,स्कूल,हॉस्पिटल कॉलेज और न जाने क्या क्या।
पब्लिक फोल्लोविंग भी खूब मिलेगी।फिर क्या फेसबुक ,क्या ट्विटर और क्या youtube ...हर जगह बाबा की जय . ज़रा सा रिस्क तो है इसमें भी है लेकिन वो managable है।अब कुछ बाबा जो इन सब सावधानियों का ध्यान नहीं रखते उनका तो ये तमाशा होना ही है अभी तो एक तमाशा देख रहे हैं चल रहा टी वी पर ।लेकिन जो अपने बेसिक principles पर कायम रहते हैं उनको लुटिया कभी नहीं डूबती। ज्यादा नहीं दो ही तीन principles हैं -
पहला -अपनी पब्लिक और प्राइवेट लाइफ को प्रोफेशन से दूर रखिये.
दूसरी कि अपने काम से ही मतलब रखिये और
तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण बात की जरा फुलझड़ीयों से दूरी बनाये रखिये वरना खुद को जला लीजियेगा जैसा हमारे एक बंधू ने अभी- अभी जला लिया है।
अब उम्र हो गयी बाबा ।अब इन सब चीज़ों की मोह-माया त्यागिये।

इतने से प्रवचन देने के बाद मेरे महा ज्ञानी मन ने अपनी निद्रा को ग्रहण करने का निर्णय कर लिया है तो अब आप सब की अनुमति चाहता हूँ।

-धन्यवाद

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