जाने गुलशन की फ़िज़ा को क्या हुआ है
आज तो हर फूल ही सहमा हुआ है

अब दरीचों से महज हम देखते हैं
चाँदनी में भींगना सपना हुआ है

आसमाँ में उड़ रहे उजले कबूतर
रास्तों पे सुर्ख़ रंग बिखरा हुआ है

रात आँचल में छुपा लेती है वर्ना
धुल न पाता, स्याह जो चेहरा हुआ है

ज़ख्म है तो दर्द होना लाज़मी है
आह पे क्यों इतना हंगामा हुआ है

Sign In to know Author